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एस धम्मो सनंतनो
वासना का स्वभाव समझ पाएंगे। दूसरे तो समझेंगे भी कैसे? वासना से दूर-दूर खड़े रहे, डरे रहे, भयभीत रहे, वासना में कभी उतरे ही नहीं, कभी वासना के उस पात्र को गौर से देखा नहीं, हाथ में न लिया जिसमें पेंदी नहीं है, तो वासना का स्वभाव कैसे समझोगे? वासना के स्वभाव के लिए वासना में उतरने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं। जो उतरेगा, वही जानेगा। जो दूर खड़ा रहेगा, वंचित रह जाएगा। जो दूर खड़ा रहेगा, ललचाएगा। उसे पात्र तो दिखायी पड़ेगा, वह जो पेंदी नहीं है, वह दिखायी न पड़ेगी। और दूसरे के पात्रों में उसे यह भ्रांति रहेगी कि कौन जाने भर ही गए हों। __सिकंदर को बाहर से तुम देखोगे तो क्या तुम सोच पाओगे कि इसका पात्र भी खाली है? बड़े महल हैं। बड़ा साम्राज्य है। बड़ा धन-वैभव है। बड़ी शक्ति-संपदा है। कैसे तुम समझोगे? पात्र पर हीरे-जवाहरात जड़े हैं; पर पेंदी नहीं है। और हीरे-जवाहरातों से थोड़े ही पानी रुकेगा पात्र में। गरीब का पात्र टूटा-फूटा है, दो कौड़ी का है, एल्यूमिनियम का है। सिकंदर का पात्र स्वर्ण का है, हीरे-जवाहरात जड़े हैं, पर दोनों का स्वभाव एक सा है। दोनों में पेंदी नहीं है। दूर से तो पात्र दिखायी पड़ेगा। पास से ही देखना पड़ेगा। निरीक्षण भर-आंख करना पड़ेगा। उतरना पड़ेगा। जीना पड़ेगा। इसलिए उपनिषद कहते हैं : तेन त्यक्तेन भुंजीथाः। जिन्होंने भोगा, उन्होंने ही त्यागा।
बुद्ध कहते हैं वासना का स्वभाव। उपनिषद कहते हैं वासना को भोगने का परिणाम-जिन्होंने भोगा उन्होंने ही त्यागा। मैं कहता हूं, न भोगो न त्यागो, वरेन जागो। क्योंकि भोगा तो बहुत ने, लेकिन उपनिषद का कोई इक्का-दुक्का ऋषि जान पाया-तेन त्यक्तेन भुंजीथाः। भोगा बहुत ने, लेकिन सोए-सोए भोगा। सोए-सोए भोगोगे तो भी नहीं जान पाओगे। आंख बंद हों तो पात्र को भरते रहोगे, पेंदी का पता ही न चलेगा। ___ मुल्ला नसरुद्दीन के जीवन में बड़ी प्राचीन घटना है। एक युवक उसके पास आया और उस युवक ने कहा, बड़ी दूर से आया हूं सुनकर खबर। सुगंध की चर्चा सुनकर आया हूं। बहुत गुरुओं के पास रहा, कुछ पा न सका। हताश होने के करीब था कि किसी ने तुम्हारी खबर दी है। और पक्का भरोसा लेकर आया हूं कि अब हाथ खाली न जाएंगे। ___मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, उस संबंध में पीछे बात कर लेंगे, श्रद्धा है? क्योंकि श्रद्धा हो तब ही तुम सत्य को सम्हाल सकोगे। मेरे पास सत्य है, पर तुम्हारे पास श्रद्धा है? उस खोजी ने कहा, परिपूर्ण श्रद्धा लेकर आया हूं। जो कहेंगे स्वीकार करूंगा। नसरुद्दीन ने कहा, अभी तो मैं कुएं पर पानी भरने ज़ाता हूं, मेरे पीछे आओ। और एक ही बात की श्रद्धा रखना कि मैं जो भी करूं शांति से निरीक्षण करना, प्रश्न मत उठाना। इतना होश रखना। उस युवा ने कहा, यह भी कोई परीक्षा हुई! गया