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________________ एस धम्मो सनंतनो एक दिन उसने कहा कि यह बात बहुत हुई जा रही है, यह मामला क्या है? यह आदमी क्यों आपके ऊपर थूकता है? ___ तो उस मनोवैज्ञानिक ने कहा, यह उसकी समस्या है, उसी से पूछो। मेरा इसमें कोई हाथ ही नहीं है। यह समस्या उसकी है, उसी से पूछो। बेचारा! जरूर कोई न कोई पागलपन उसे सवार है। मेरा तो कुछ भी नहीं बिगड़ता। पोंछ लेता हूं। उसकी सोचो! असली तकलीफ वही पा रहा है। थूकने के पहले तकलीफ पाता होगा, थूकते वक्त तकलीफ पाता है, पीछे तकलीफ पाता होगा। क्योंकि समस्या उसकी है, वही कुछ कर रहा है। हम तो केवल दर्शक हैं। __ अगर जीवन को ऐसे देखने की कला आ जाए तो फिर तुम्हें कोई दुख नहीं दे सकता। दूसरा देना भी चाहे तो यह उसकी समस्या है। और तुम इस भ्रांति में कभी मत पड़ना कि वैर से तुम दूसरों के वैर को मिटा दोगे। कभी कोई नहीं मिटा पाया। प्रेम से ही मिटता है वैर। करुणा से ही मिटता है क्रोध। ___'इस संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होते, अवैर से ही होते हैं। यही सनातन नियम है।' यह बुद्ध के धर्म की आधारशिला है। और थोड़ा सोचो भी कि कौन तुम्हें सुख दे पाता है, कौन तुम्हें दुख दे पाता है! सब तुम्हारे मन का ही हिसाब है। अभी घड़ी भर पहले जो बात सुख देती थी, घड़ी भर बाद दुख देने लगती है। अभी जो बात दुख दे रही है, घड़ी भर बाद सुख दे सकती है। तुम्हारी व्याख्या! तुम कैसे उस बात को पकड़ते हो! क्या उस बात को रंग देते हो! क्या रूप देते हो! और अगर तुम्हें यह दिखायी पड़ जाए कि कोई दूसरा सुख नहीं दे सकता, तो दुख कैसे देगा? किसने तुम्हें कभी कोई सुख दिया, याद है कुछ? किसने तुम्हें कभी कोई आनंद दिया, याद है कुछ? और जब किसी ने कोई सुख नहीं दिया, तो दुख कोई क्या देगा! मैं एक गीत कल पढ़ता था। बात मूल्यवान लगी डरूं मैं किसलिए गुस्से से, प्यार में क्या था मैं अब खिजां को जो रोऊ, बहार में क्या था डरूं मैं किसलिए गुस्से से, प्यार में क्या था जब दूसरे के प्यार से कुछ न मिला, तब उसके गुस्से से क्या परेशान होना है! जब प्यार ही कुछ न दे सका, तो गुस्सा क्या छीन लेगा? ___ मैं अब खिजां को जो रोऊ, बहार में क्या था और अब पतझड़ आ गयी, सब वीरान हुआ जाता है-इसको रोऊं? लेकिन बहार में क्या था? जब बहार थी तब भी जब कुछ पास न था; जब बहार में भी कोई सुख न मिला, तो अब पतझार में दुख का क्या प्रयोजन है? लेकिन आदमी बड़ा अजीब है! जिनसे तुम्हें सुख नहीं मिला, उनसे भी तुम दुख 24
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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