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________________ आत्मक्रांति का प्रथम सूत्र : अवैर ले लेते हो। जिनके जीते जी तुम्हें कभी कोई शांति नहीं मिली, उनके मरने पर तुम रोते हो । - मैं एक युगल को जानता हूं। जब तक पति जिंदा रहा, पति और पत्नी निरंतर कलह करते रहे। कभी-कभी मेरे पास आते थे। लेकिन सुलझाव कोई आसान न था। सब उलझाव सुलझ जाएं, पति-पत्नी के बड़े मुश्किल से सुलझते हैं, क्योंकि सुलझाना ही नहीं चाहते। शायद वही उनकी जिंदगी है, वही व्यस्तता है, वही कुल भराव है। वह भी चला जाए, तो फिर बड़ा खाली हो जाता है। कई बार तलाक देने की बात भी उठी, लेकिन उस पर भी राजी न हो पाते थे। फिर पति शराब पीने लगा। और शराब पीते-पीते मरा। जवान ही था, अभी कोई छत्तीस साल उम्र थी, ज्यादा नहीं थी। जब मर गया तो पत्नी मेरे पास आयी, छाती पीट-पीटकर रोने लगी। मैंने उससे कहा, अब तू रोना बंद कर। क्योंकि जिस आदमी के कारण तू कभी हंसी नहीं, उसके लिए रोना क्या ? और मैं जानता हूं कि हजार बार तेरे मन में यह सवाल उठता रहा होगा कि यह आदमी मर ही जाए तो अच्छा! बोल, झूठ कहता हूं या सच? वह थोड़ी चौंकी। उसने कहा, आपको कैसे पता चला? पता चलने की क्या बात है ? कितनी बार तूने नहीं सोचा है कि यह आदमी मर ही जाए तो झंझट मिटे | अब मर गया। आकांक्षा पूरी हो गयी । अब क्यों रोती है ? जिससे तुझे सुख नहीं मिला, उससे दुखी होने का क्या प्रयोजन है? लेकिन यही बड़े मजे की बात है। सुख लेने में तो तुम बड़े कंजूस हो, दुख लेने में तुम बड़े कुशल हो । सुख तो तुम बामुश्किल स्वीकार करते हो । दुख, तुम द्वार सजाकर खड़े हो सदा। स्वागतम ! हाथ फैलाए खड़े हो सदा। तुम दुखी होना चाहते हो ! दुखवादी हो ! अन्यथा कोई कारण नहीं तुम्हारे दुखी होने का । जीवन को जो जानते हैं, वे पहचान लेते हैं कि न तो दूसरे से सुख मिलता है, न दुख मिलता है। न तो किसी के जीवन से तुम्हें जीवन मिलता है, न किसी की मौत से तुम्हें मौत मिलती है। डरूं मैं किसलिए गुस्से से, प्यार में क्या था मैं अब खिजां को जो रोऊं, बहार में क्या था और जब तुम्हें दोनों बातें साफ दिखायी पड़ जाती हैं, तब जैसे एक उदघाटन हो जाता है भीतर, एक बिजली कौंध जाती है कि यह मैं ही हूं, अपनी ही शकल देखता हूं, दूसरे तो केवल दर्पण हैं। अपने ही प्रतिबिंब, अपनी ही प्रतिध्वनि, अपनी ही परछाईं पकड़ता हूं, दूसरे तो केवल दर्पण हैं; घाटियां हैं, जिनमें अपनी ही आवाज गूंजकर लौट आती है। इसे बुद्ध एस धम्मो सनंतनो कहते हैं, यही धर्म का सनातन सूत्र है। न परमात्मा, न मोक्ष, न वेद, न आत्मा — कोई भी धर्म के मूल आधार नहीं हैं। बुद्ध कहते हैं, एस धम्मो सनंतनो- यह छोटा सा सूत्र कि तुम्हारे दुख के कारण तुम हो, तुम्हारे 25
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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