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________________ एस धम्मो सनंतनो भी कोई जरूरत न रही। तो पूर्ण ने कहा कि जाऊंगा—'सूखा' नाम का एक इलाका था बिहार में-वहां जाऊंगा। बुद्ध ने कहा, तू खतरा मोल ले रहा है। वह जगह भली नहीं। लोग सज्जन नहीं। लोग बड़े दुष्ट हैं और लोग सताने में रस लेते हैं। लोग तुझे परेशान करेंगे। इन पीत-वस्त्रों में उन्होंने भिक्षु कभी देखा नहीं। वे बड़े जंगली हैं। तू वहां मत जा। पर पूर्ण ने कहा, इसीलिए तो उनको मेरी जरूरत है। किसी को तो जाना ही होगा। कब तक वे जंगली रहें? कब तक उनको पशुओं की तरह रहने दिया जाए? मुझे जाना होगा। आज्ञा दें। बुद्ध ने कहा, जा; मगर मेरे दो-तीन सवालों के जवाब दे दे। पहला : अगर वे तुझे गालियां दें, अपमान करें, तो तुझे क्या होगा? तो पूर्ण ने कहा, यह भी आप मुझसे पूछते हैं, क्या होगा? आप भलीभांति जानते हैं कि मैं प्रसन्न होऊंगा। क्योंकि मेरे मन में यह भाव उठेगा, कितने भले लोग हैं, सिर्फ गालियां देते हैं, मारते नहीं। मार भी सकते थे। __बुद्ध ने कहा, ठीक। मगर अगर मारें, मारने ही लगें, तो तेरे मन में क्या होगा? पूर्ण ने कहा, आप पूछते हैं? आप भलीभांति जानते हैं कि पूर्ण प्रसन्न होगा, कि धन्यभाग कि मारते हैं, मार ही नहीं डालते। मार भी डाल सकते थे। , बुद्ध ने कहा, आखिरी सवाल, पूर्ण। अगर मार ही डालें, तो मरते वक्त तेरे मन में क्या होगा? पूर्ण ने कहा, आप, और पूछते हैं? आपको भलीभांति मालूम है कि जब मैं मर रहा होऊंगा तो मेरे मन में होगा, धन्यभाग, उस जीवन से छुटकारा दिला दिया जिसमें कोई भूल-चूक हो सकती थी। ___बुद्ध ने कहा, अब तू जा। अब तुझे जहां जाना है, तू जा। अब तुझे कोई गाली नहीं दे सकता। अब तुझे कोई मार नहीं सकता। अब तुझे कोई मार डाल नहीं सकता। ऐसा नहीं कि वे तुझे गाली न देंगे; गाली तो वे देंगे, लेकिन तुझे अब कोई गाली नहीं दे सकता। ऐसा नहीं कि वे तुझे मारेंगे नहीं; मारेंगे, लेकिन तुझे अब कोई मार नहीं सकता। और कौन जाने, कोई तुझे मार भी डाले; लेकिन अब तू अमृत है। अब तेरी मृत्यु संभव नहीं। सारा खेल मन का है, कैसे हम देखते हैं! 'उसने मुझे डांटा, उसने मुझे मारा, मुझे जीत लिया, मेरा लूट लिया—जो ऐसी गांठे मन में नहीं बनाए रखते हैं, उनका वैर शांत हो जाता है।' __ और वैर नर्क है। कहीं और कोई नर्क नहीं; शत्रुता में जीना नर्क है। तुम जितनी शत्रुता अपने चारों तरफ बनाते हो, उतना तुम्हारा नर्क बड़ा हो जाता है। तुम जितनी मित्रता अपने चारों तरफ बनाते हो, उतना स्वर्ग खड़ा हो जाता है। स्वर्ग मित्रों के बीच जीने का नाम है। नर्क शत्रुओं के बीच जीने का नाम है। और सब तुम पर निर्भर है। नर्क कोई भौगोलिक जगह नहीं है, और न स्वर्ग कोई भौगोलिक जगह है। नक्शों 22
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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