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________________ आत्मक्रांति का प्रथम सूत्र : अवैर मकान आपके लिए नहीं है, आप मकान के लिए हो। आप मालिक नहीं हो, यह मकान मालिक है। आप वस्तु को अपना सब सम्हाल दिए हैं, दे दिए हैं वस्तुओं को। आप गुलाम हो गए हैं। मुझे डर था कि कभी न कभी यह होगा, कोई मकान बड़ा बगल में खड़ा हो जाएगा, तो तुम न झेल पाओगे। वे रुग्ण रहने लगे जब से वह मकान बन गया। मन में सारा खेल है। यही जिंदगी मुसीबत यही जिंदगी मसर्रत . यही जिंदगी हकीकत यही जिंदगी फसाना कैसी मन की व्याख्या है, कैसे तुम देखते हो, कैसे तुम सोचते हो, कैसी तुम व्याख्या करते हो जीवन की-सब उस पर निर्भर है। 'मन सभी प्रवृत्तियों का पुरोगामी है, मन उनका प्रधान है। यदि कोई प्रसन्न मन से बोलता है या कर्म करता है, तो सुख उसका अनुसरण करता है वैसे ही जैसे कभी साथ न छोड़ने वाली छाया।' । अगर तुम दुखी हो तो अपने को कारण जानना, अगर सुखी हो तो अपने को कारण जानना। अपने से बाहर कारण को मत ले जाना। वही धोखा है। इसको ही मैं धार्मिक क्रांति कहता हूं। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन के सारे कारणों को अपने भीतर देख लिया, वह व्यक्ति धार्मिक हो गया। क्योंकि अब उसके हाथ में है बात। अब दुखी होना हो, तो तुम जानते हो कौन से बीज बोने। सुखी होना हो, तो जानते हो कौन से बीज बोने। अब कोई मजबूरी न रही। फिर अगर दुख में ही मजा लेना हो, तो मजे से बीज बोओ; कोई बाधा नहीं डाल सकता। लेकिन एक बात फिर तुम न कर सकोगे कि दुख के तो बीज बोओ और रोना भी रोओ कि मैं दुखी क्यों हूं! अपने ही हाथ से जहर पीओ, और फिर रोओ कि मैं मर क्यों रहा हूं! मरना हो, मजे से जहर पीओ। जीना हो, मत पीओ। तुम्हारे हाथ हैं, तुम्हारी प्याली है, तुम्हारा जहर है-और तुम्हीं को जीना या मरना है। ____ 'उसने मुझे डांटा, मुझे मारा, मुझे जीत लिया, मेरा लूट लिया—जो ऐसी गांठे मन में बनाए रखते हैं, उनका वैर शांत नहीं होता।' __ उसने! दूसरे पर जिनका सारा जोर है-उसने मुझे डांटा, उसने मुझे मारा, उसने मुझे जीत लिया, मेरा लूट लिया--जो दूसरे पर नजर रखते हैं...। बुद्ध का एक शिष्य हुआ पूर्ण काश्यप। वह निश्चित ही पूर्ण हो गया था, इसलिए उसे बुद्ध पूर्ण कहते हैं। फिर एक दिन बुद्ध ने उससे कहा कि पूर्ण, अब तू पूर्ण सच में ही हो गया। अब मेरे साथ-साथ डोलने की कोई जरूरत न रही। अब तू जा। अब तू गांव-गांव, नगर-नगर घूम और डोल। मेरी खबर ले जा। मेरे पास तूने जो पाया है, उसे लटा। पूर्ण ने कहाः भगवान, किस दिशा में जाऊं? आप इशारा कर दें। बुद्ध ने कहा: तू खुद ही चुन ले। अब तू खुद ही समर्थ है। अब मेरे इशारे की 21
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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