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________________ एस धम्मो सनंतनो नासमझ सोचते हैं कि तब बड़ी शांति थी; क्योंकि कार नहीं थी, तो कार की तो चिंता पैदा नहीं हो सकती थी। हवाई जहाज नहीं था, तो हवाई जहाज खरीदना है इसकी चिंता तो पैदा नहीं हो सकती थी। लेकिन तुम गलती में हो। चिंताएं इतनी ही थीं। क्योंकि किसी के पास शानदार बैलगाड़ी थी, बग्घी थी, वह चिंता पैदा करवाती थी। किसी के पास शानदार घोड़ा था, वह चिंता पैदा करवाता था। चिंता के लिए विषय से कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम लहर सरोवर में उठाने के लिए एक कंकड़ फेंको या कोहिनूर हीरा फेंको, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कोहिनूर हीरा भी वृत्ति उठाता है, साधारण कंकड़ भी उतनी ही वृत्ति उठाता है, उतनी ही लहर उठाता है। पानी फिकर नहीं करता कि तुमने कोहिनूर फेंका कि कंकड़ फेंका। कुछ फेंका, बस इतना काफी है। मन ने कुछ भी फेंका और उपद्रव शुरू हुआ। _ 'मन सभी प्रवृत्तियों का पुरोगामी है; मन उनका प्रधान है; वे मनोमय हैं। यदि कोई दोषयुक्त मन से बोलता है या कर्म करता है, तो दुख उसका अनुसरण वैसे ही करता है जैसे गाड़ी का चक्का खींचने वाले बैलों के पैर का।' __बुद्ध ने एक सूत्र पायाः जीवन में दुख है। हम भी जीवन में दुखी हैं। और जब हमें दुख पकड़ता है तो हम पूछते हैं, किसने दुख पैदा किया? कौन मेरा दुख पैदा कर रहा है-पत्नी, पति, बेटा, बाप, मित्र, समाज? कौन मेरा दुख पैदा कर रहा है-आर्थिक-व्यवस्था, सामाजिक-ढांचा? कौन मेरा दुख पैदा कर रहा है? मार्क्स से पूछो तो वह कहता है, दुख पैदा हो रहा है क्योंकि समाज का आर्थिक ढांचा गलत है। गरीबी है, अमीरी है, इसलिए दुख पैदा हो रहा है। ___ फ्रायड से पूछो तो वह कहता है, दुख इसलिए पैदा हो रहा है कि मनुष्य को अगर उसकी वृत्तियों के प्रति पूरा खुला छोड़ दिया जाए, तो वह जंगली जानवर जैसा हो जाता है। दुख पैदा होगा उससे। सभ्यता नष्ट हो जाएगी। अगर उसे समझायाबुझाया जाए, तैयार किया जाए, परिष्कृत किया जाए, तो दमन हो जाता है। दमन होने से दुख पैदा होता है। इसलिए फ्रायड ने कहा, दुख कभी भी न मिटेगा। अगर आदमी को बिलकुल खला छोड़ दो, तो मार-काट हो जाएगी; क्योंकि आदमी के भीतर हजार तरह की जानवरी वृत्तियां हैं। अगर दबाओ, ढंग का बनाओ, सज्जन बनाओ, तो दमन हो जाता है। दमन होता है, तो दुख होता रहता है, वृत्तियां पूरी नहीं हो पातीं। पूरी करो तो मुसीबत, न पूरी करो तो मुसीबत।। तो फ्रायड ने तो अंत में कहा कि आदमी जैसा है, कभी सुखी हो ही नहीं सकता। सुख असंभव है। फ्रायड और मार्क्स, इनका विश्लेषण ही अगर अकेला विश्लेषण होता तो पक्का है कि आदमी कभी सुखी नहीं हो सकता। क्योंकि रूस में गरीब-अमीर मिट गए, लेकिन दुख नहीं मिटा। गरीब-अमीर मिट गए, तो दूसरे वर्ग खड़े हो गए। कोई
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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