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आत्मक्रांति का प्रथम सूत्र : अवैर सोचेगा कि कार खरीदनी है। अगर तुम वहां खड़े हो और कैमरे जैसी तुम्हारी आंख है-तुमने सिर्फ देखा, काली कार गुजर गयी। चित्र बना, गया। एक छाया आयी, गयी- कुछ भी कठिनाई नहीं है।
लेकिन जब यह काली छाया कार की तुम्हारे भीतर से निकल रही है, तब तुम्हारे मन में एक कामना जगी-ऐसी कार मेरे पास हो! मन में एक विकार उठा। एक लहर उठी-जैसे पानी में किसी ने कंकड़ फेंका और लहर उठी। कार तो जा चुकी, अब लहर तुम्हारे साथ है। अब यह लहर तुम्हें चलाएगी।
तुम धन कमाने में लगोगे, या तुम चोरी करने में लगोगे, या किसी की जेब काटोगे। अब तुम कुछ करोगे। अब वृत्ति ने तुम्हें पकड़ा। अब वृत्ति तुम्हारी कभी क्रोध करवाएगी, अगर कोई बाधा डालेगा। अगर कोई मार्ग में आएगा तो तुम हिंसा करने को उतारू हो जाओगे, मरने-मारने को उतारू हो जाओगे। अगर कोई सहारा देगा तो तुम मित्र हो जाओगे, कोई बाधा देगा तो शत्रु हो जाओगे। अब तुम्हारी रातें इसी सपने से भर जाएंगी। बस यह कार तुम्हारे आसपास घूमने लगेगी। जब तक यह न हो जाए, तुम्हें चैन न मिलेगा।
और मजा यह है कि वर्षों की मेहनत के बाद जिस दिन यह तुम्हारी हो जाएगी, तुम अचानक पाओगे, कार तो अपनी हो गयी, लेकिन अब? इन वर्षों की बेचैनी का अभ्यास हो गया। अब बेचैनी नहीं छोड़ती। कार तो अपनी हो गयी, लेकिन बेचैनी नहीं जाती, क्योंकि बेचैनी का अभ्यास हो गया। ____ अब तुम इस बेचैनी के लिए नया कोई यात्रा-पथ खोजोगे। बड़ा मकान बनाना है! हीरे-जवाहरात खरीदने हैं! अब तुम कुछ और करोगे, क्योंकि अब बेचैनी तुम्हारी आदत हो गयी। और अब इस बेचैनी का तुम क्या करोगे? सालों तक बेचैनी को सम्हाला, कार तो मिल गयी; लेकिन अब कार का मिलना न मिलना बराबर है। अब यह बेचैनी पकड़ गयी। ___ इसीलिए तो धनी बहुत लोग हो जाते हैं और धनी नहीं हो पाते। क्योंकि जब वे ध्रनी होते हैं, तब तक बेचैनी का अभ्यास हो गया उनका। जब तक धनी हुए तब तक चैन से न रह सके, सोचा कि जब धनी हो जाएंगे तब चैन से रह लेंगे। लेकिन चैन कोई इतनी आसान बात है! अगर बेचैनी का अभ्यास घना हो गया, तो धनी तो तुम हो जाओगे, बेचैनी कहां जाएगी? तब और धनी होने की दौड़ लगती है। और मन कहता है, और धनी हो जाएं, फिर...। लेकिन सारा जाल मन का है।
बुद्ध ने अपनी एक-एक वृत्ति को जांचा और पाया कि वृत्ति मन के सरोवर में उठी लहर है। वृत्ति का मतलब ही लहर होता है। वह मन का कंप जाना है। अगर मन निष्कंप रह पाए तो कोई वृत्ति पैदा नहीं होती। अगर मन कंप गया, तो वृत्ति पैदा हो जाती है। फिर कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस चीज से कंपता है।
आज से ढाई हजार साल पहले बुद्ध के समय में कार तो नहीं थी, तो कई
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