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________________ एस धम्मो सनंतनो इस नक्शे में कहा है बाएं मुड़ना, बाएं मुड़ो तो गड्ढा है। यात्रा होती नहीं । दाएं मुड़ो तो ही हो सकती है। जब तुम यात्रा पर निकलोगे तभी परीक्षा होती है तुम्हारे नक्शों की । उसके बिना कोई परीक्षा नहीं। जो भी यात्रा पर गए, उन्होंने शास्त्र को सदा कम पाया। जो भी यात्रा पर गए, उन्होंने गुरुओं को कम पाया । जो भी यात्रा पर गए, उन्हें एक बात अनिवार्यरूपेण पता चली कि प्रत्येक को अपना मार्ग स्वयं ही खोजना पड़ता है। दूसरे से सहारा मिल जाए, बहुत । पर कोई दूसरा तुम्हें मार्ग नहीं दे सकता। क्योंकि दूसरा जिस मार्ग पर चला था, तुम उस पर कभी भी न चलोगे। वह उसके लिए था । वह उसका था। वह उसके स्वभाव में अनुकूल बैठता था । और प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है। बुद्ध ने यह घोषणा की कि प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है। इसलिए एक ही राजपथ पर सभी नहीं जा सकते, सबकी अपनी पगडंडी होगी। इसलिए सदगुरु तुम्हें रास्ता नहीं देता, केवल रास्ते को समझने की परख देता है । सदगुरु तुम्हें विस्तार के नक्शे नहीं देता, केवल रोशनी देता है, ताकि तुम खुद विस्तार देख सको, नक्शे तय कर सको। क्योंकि नक्शे रोज बदल रहे हैं। जिंदगी कोई थिर बात नहीं है, जड़ नहीं है। जिंदगी प्रवाह है। जो कल था वह आज नहीं है, जो आज है वह कल नहीं होगा। सदगुरु तुम्हें प्रकाश देता है, रोशनी देता है, दीया देता है हाथ में कि यह दीया ले लो, अब तुम खुद खोजो और निकल जाओ। और ध्यान रखना; खुद खोजने से जो मिलता है, वही मिलता है। जो दूसरा दे दे, वह मिला हुआ है ही नहीं। दूसरे का दिया छीना जा सकता है। खुद का खोजा भर नहीं छीना जा सकता। और जो छिन वह कोई अध्यात्म है ? जो छीना न जा सके, वही । पहली गाथा : 'मन सभी प्रवृत्तियों का पुरोगामी है; मन उनका प्रधान है, वे मनोमय हैं। यदि कोई दोषयुक्त मन से बोलता है या कर्म करता है, तो दुख उसका अनुसरण वैसे ही करता है जैसे गाड़ी का चक्का खींचने वाले बैलों के पैर का ।' छोटा सूत्र, पर बड़ा दूरगामी । ध्यान रखना, बुद्ध किसी शास्त्र को नहीं दोहरा रहे हैं । बुद्ध से शास्त्र पैदा हो रहा है I 'मन सभी प्रवृत्तियों का पुरोगामी है । ' कोई भी वृत्ति उठती है... राह पर तुम खड़े हो, एक सुंदर कार निकली। क्या हुआ तुम्हारे मन में? एक छाप पड़ी । एक काली कार निकली, एक प्रतिबिंब गूंजा। कार के निकलने से वासना पैदा नहीं होती – अगर तुम देखते रहो और तुम्हारा देखना ऐसा ही तटस्थ हो जैसे कैमरे की आंख होती है। कैमरे के सामने से भी कार निकल जाए, वह फोटो भी उतार देगा, तो भी कार खरीदने नहीं जाएगा। और न 16
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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