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________________ एस धम्मो सनंतनो पूछा कि और सब तो ठीक है, लेकिन यह मेरी समझ में नहीं आया कि इसमें आईना क्यों लगा है? दुकानदार ने कहा, यह इसलिए कि जब तुम भटक जाओ, तो कॅम्पास तो बताएगा स्थान; आईने में तुम देख लेना ताकि पता चल जाए-कौन भटक गया है? कहां भटक गए हो यह तो कॅम्पास से पता चल जाएगा, लेकिन कौन भटक गया है...! अपना पता नहीं है, स्वर्ग के नक्शे बना दिए हैं। विवाद चल रहे हैं लोगों के-कितने नर्क होते हैं? हिंदू कहते हैं, तीन। जैन कहते हैं, सात। बुद्ध ने बड़ी मजाक की है, उन्होंने कहा, सात सौ। यह मजाक की है, क्योंकि बुद्ध को जरा भी उत्सुकता नहीं है इस तरह की मूढ़ताओं में। लेकिन मजाक भी नहीं समझ पाते लोग। बुद्ध के मानने वाले हैं जो कहते हैं कि नहीं, सात सौ ही होते हैं, इसीलिए कहे। मैं तुमसे कहता हूं, सात हजार। आदमी सत्य से भी झूठ खोज लेता है। इसलिए आदमी भटकता है। बुद्ध बड़े शुद्ध खोजी हैं। उनकी खोज बड़ी निर्दोष। घर छोड़ा तो जितने गुरु उपलब्ध थे, सबके पास गए। गुरु उनसे थक गए; क्योंकि असली शिष्य आ जाए तभी पता चलता है कि गुरु गुरु है या नहीं। झूठे शिष्य हों साथ, तो पता ही नहीं चलता। लोग मुझसे पूछते हैं आकर, कि असली गुरु का कैसे पता चले? मैं उनको कहता हूं, तुम फिक्र न करो। अगर तुम असली शिष्य हो, पता चल जाएगा। नकली गुरु तुमसे बचेगा, भागेगा, कि यह चला आ रहा है असली शिष्य, यह झंझट खड़ी करेगा। तुम गुरु की फिक्र ही छोड़ दो। असली शिष्य अगर तुम हो, तो नकली गुरु तुम्हारे पास टिकेगा ही नहीं। तुम टिके रहना, वही भाग जाएगा। जिब्रान की कहानी है कि एक आदमी गांव-गांव कहता फिरता था कि मुझे स्वर्ग का पता है, जिनको आना हो मेरे साथ आ जाओ। कोई आता नहीं था, क्योंकि लोगों को हजार दूसरे काम हैं, कोई स्वर्ग जाने की इतनी जल्दी वैसे भी किसी को नहीं है। लोग स्वर्गीय तो मजबूरी में होते हैं। जब हाथ-पैर ही नहीं चलते और लोग मरघट पर पहुंचा आते हैं, तब स्वर्गीय होते हैं। कोई स्वर्गीय होने को राजी नहीं था। लोग कहते, आपकी बात सुनते हैं, जंचती है; जब जरूरत होगी तब उपयोग करेंगे, मगर अभी कृपा करें, अभी...अभी हमें जाना नहीं। एक गांव में ऐसा हुआ...उस आदमी का खूब धंधा चलता था। क्योंकि जिनको स्वर्ग नहीं जाना, उनको बचने के लिए भी गुरु को कुछ गुरु-दक्षिणा देनी पड़ती थी। वह आ जाए गांव में और समझाए, तो उसकी कुछ सेवा भी करनी पड़ती, पैर भी पड़ने पड़ते। वे कहते, तुम बिलकुल ठीक हो, मगर अभी हम साधारणजन, अभी संसार में उलझे हैं; जब कभी सुलझेंगे, जरूर आपकी बात का खयाल करेंगे। रख लेते हैं सम्हालकर हृदय में। तो गुरु का धंधा भी चलता था। न कभी कोई झंझट 14
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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