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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हारा नाच झूठा होगा। और झूठे नाच से तुम सच्चे परमात्मा तक न पहुंच पाओगे। नाच थोड़े ही पहुंचाता है, नाच की सच्चाई पहुंचाती है। प्रामाणिकता, उसकी गहराई! अगर बुद्ध की तरह वृक्ष के, बोधिवृक्ष के नीचे शांत बैठना ही तुम्हारा स्वभाव हो तो उससे भी पहुंच जाओगे। क्योंकि बैठना थोड़े ही पहुंचाता है, बैठने की सच्चाई! झेन फकीर कहते हैं, सिर्फ बैठना काफी है। इससे ज्यादा करने की कोई जरूरत नहीं है। जो चुप होकर बैठ गया, वह पहुंच गया। क्योंकि जाना कहां है? अपने ही भीतर, अपने ही भीतर उतर जाना है। कुछ करने की जरूरत नहीं है। . तुम यह मत समझना कि मीरा नाचकर वहां पहुंचती है। नाचने से उसका क्या लेना-देना है? या बुद्ध बैठकर पहुंचते हैं। बैठने से भी क्या लेना-देना है? कोई भी कृत्य जो तुम्हारी परिपूर्णता से आता है, वही पहुंचा देता है। परिपूर्णता पहुंचाती है। और ध्यान रखना उधारी से तुम न पहुंचोगे। कोई प्रॉक्सी वहां नहीं चलती। तुम ही जाओगे तो ही...। कोई दूसरा तुम्हारी जगह हाजिरी न भरवा सकेगा। तुम किसी दूसरे से न कह सकोगे। वह कोई भारतीय विश्वविद्यालय की कक्षा नहीं है कि एक मित्र को कह गए कि जब मेरा नाम आए तो कह देना। मैं खुद ही यही करता रहा सालों। लेकिन उस सत्य के जगत में कोई प्रॉक्सी, कोई दूसरा तुम्हारे लिए यस सर न कह सकेगा। तुम ही मौजूद होओगे तो ही...। एक खयाल रखो बातः अपने साज को पहचानो। ध्यान से मन लग रहा है, तो तुम्हारा साज खुद ही तुमसे कह रहा है कि गाओ गीत ध्यान का। __मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं । ये वो नग्मा है जो हर साज पर गाया नहीं जाता __ पर ध्यान भी ऐसा ही है। हर कोई ध्यान न कर सकेगा। मीरा को लाख कहो कि बैठ जा तू, वह बैठ न सकेगी। वह बैठना दूभर हो जाएगा। बुद्ध को कहो : नाचो। थोड़ा सोचो, उन पर कैसी मुसीबत न आ जाएगी! तुम कितना ही बैंड-बाजा बजाओ, उनके पैर में थिरकन भी न होगी। तुम्हारा बैंड-बाजा सुनकर वे और भी आंख बंद करके शांत हो जाएंगे। अलग-अलग साज हैं। अलग-अलग नग्मे हैं। हर साज का अपना नग्मा है। अपने साज को पहचानो, नग्मे की नकल मत करना। तुम्हारा साज बजने लगे! गुलाब गुलाब बने, कमल कमल बने। जब वे खिल जाएंगे, तो दोनों ही परमात्मा के चरणों में समर्पित हो जाते हैं। एक ही बात खयाल रहे, इस बात को ही मैं आस्तिकता कहता हूं जो कहोगे तुम कहेंगे हम भी हां यूं ही सही आपकी गर यूं खुशी है मेहरबां यूं ही सही __परमात्मा की तरफ बस यह एक भाव रहे कि तुम जो कहोगे-ध्यान तो ध्यान। साज से पूछ लेना, वह परमात्मा का बनाया हुआ है। 234
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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