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________________ देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है जो कहोगे तुम कहेंगे हम भी हां यूं ही सही आपकी गर यूं खुशी है मेहरबां यूं ही सही तुम अपनी खुशी बीच में मत डालना। तुम यह मत कहना कि मैं तो प्रेम का गीत गाऊंगा। वही नास्तिकता है। तुम यह मत कहना कि मैं तो ध्यान का ही गीत गाऊंगा, चाहे साज पर बैठता हो या न बैठता हो। वही नास्तिकता है। जिसने अपनी जिद्द लानी चाही अस्तित्व के विपरीत, वही नास्तिक है। जिसने अस्तित्व को हां कहा-हां, मेहरबां यूं ही सही-बस, उसके लिए मंदिर के द्वार खुले हैं। तीसरा प्रश्नः हम प्रमादी लोगों के जीवन में सपने ही सपने हैं, पर सपनों का सत्य क्या है? क्या प्रमाद रहते उसे हम जान सकते हैं? सपने ही सपने हैं-यह तुमने मुझे सुनकर समझ लिया। इतने जल्दी मत मान लेना। जानना जरूरी है, मानना नहीं। मैंने कह दिया और तुमने मान लिया, तो काम न चलेगा; उधार हो गयी बात। तुम्हें ही खोजना पड़ेगा कि सपने हैं। बहुत लोग भटक जाते हैं दूसरों की बात मानकर। क्योंकि मैं लाख कहूं कि सपना है, अगर तुम्हें भीतर सच ही लग रहा है, तो तुम मेरी मानते भी रहोगे और चलते भी उसी की दिशा में रहोगे जो तुम्हें सच लग रहा है। यही तो उलझन है आदमी की। बुद्ध कहते हैं : क्रोध पागलपन है। तुमने सुन लिया, इनकार भी न कर सके। और बुद्ध बलशाली हैं। जब वे कहते हैं, तो उनके कहने में वजन है। जब वे कहते हैं, तो उनका पूरा व्यक्तित्व उसका प्रमाण है। तुम इनकार भी नहीं कर सकते। बुद्ध से तर्क भी नहीं कर सकते। और बहुत गहरे में तुम्हारा सोया हुआ बुद्धत्व भी भीतर से हां भरता है कि ठीक है। कितना ही तुम झुठलाओ अपने भीतर को, वह.भीतर भी कहता है कि ठीक है। संगीतज्ञ.कहते हैं कि अगर कोई बड़ा कुशल संगीतज्ञ वीणा बजाए, और दूसरी वीणा कमरे में सिर्फ रखी हो, तो उसके तार भी झनझनाने लगते हैं; वे भी जवाब देने लगते हैं; वे भी प्रतिध्वनित होने लगते हैं। पुराने दिनों में तो यही कसौटी थी संगीतज्ञ की कि कोई अगर सच में वीणा बजाने में कुशल हो गया है, तो वह तभी कुशल माना जाता था, जब दूसरे कोने में रखी वीणा जवाब देने लगे। तुम्हारी वीणा भर बजाने का सवाल नहीं है। अगर तुम्हारी वीणा सच में बज रही है, तो प्रतिध्वनि उठनी 235
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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