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एस धम्मो सनंतनो
डगमगाते क्यों हो? जहां समस्या नहीं है वहां तुम समस्या कैसे देख लेते हो? ऐसा लगता है कि बिना समस्या देखे तुम जी नहीं सकते, क्योंकि फिर तुम करोगे क्या? ___ एक मेरे पुराने मित्र हैं। मेरे साथ पढ़े भी। फिर मेरे साथ विश्वविद्यालय में शिक्षक भी थे। कोई पंद्रह साल बाद मुझे मिलने आए। कहने लगे, आपकी सब समस्याएं मिट गयीं? कोई प्रश्न न रहा? तो फिर आप करते क्या होओगे? खाली आदमी जीएगा कैसे? कुछ तो करने को चाहिए! ___ उनकी तकलीफ मैं समझता हूं। वे सोच भी नहीं सकते कि खाली होने में भी कोई रस हो सकता है। खाली होना उन्हें घबड़ाहट देगा। कुछ भी करने को नहीं है। कोई समस्या नहीं है, कोई प्रश्न नहीं है। न हो, तो आदमी बना लेता है। ____ मैं तुमसे कहता हूं, समस्याएं हैं नहीं, तुमने बनायी हैं। इस प्रश्न की ही बात . नहीं कर रहा हूं; तुम्हारे सब प्रश्नों की बात कर रहा हूं। यह प्रश्न तो बहुत सीधा-साफ है, इसलिए तुम पकड़ में आ गए। तुम बहुत चालबाजी भी करते हो। तुम ऐसे भी प्रश्न बनाते हो कि कोई पकड़ नहीं सकता।
लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, सब प्रश्न तुम्हारे बनाए हुए हैं। तुम चूंकि खाली होने से डरते हो, इसलिए कोई न कोई समस्या बनाए चले जाते हो। समस्या है, तो हल करने की सुविधा है। हल होगा तब होगा! विधि खोजेंगे, विधान खोजेंगे, शास्त्र खोजेंगे-कुछ व्यस्तता रहेगी!
इस संसार में बड़ी अजीब अवस्था है! आदमी दुख को भी इसीलिए नहीं छोड़ता कि दुख में उलझा तो रहता है, लगा तो रहता है, कुछ काम तो करता रहता है। तुम कहते जरूर हो कि दुख मिट जाए; लेकिन तुमने सच में कभी चाहा नहीं कि दुख मिट जाए, क्योंकि फिर तुम करोगे क्या! तुम कहते हो अशांति मिट जाए, लेकिन तुमने कभी पूछा कि अशांति मिट जाएगी तो तुम करोगे क्या! नहीं, भीतर एक भरोसा है कि मिटने वाली नहीं है, इसलिए पूछते रहो, कोई हर्जा नहीं है। मिटेगी थोड़े ही!
तुम्हारे सामने अगर एकदम से शून्य का द्वार खुल जाए, तुम भाग खड़े होओगे। तुम फिर लौटकर न देखोगे।
रवींद्रनाथ का गीत है कि जन्मों-जन्मों तक खोजा परमात्मा को। जब तक न मिला, तब तक बड़ी बेचैनी थी, और दौड़ थी, और तड़फ थी। लोग तड़फ का भी बड़ा मजा लेते हैं, बड़ा प्रदर्शन करते हैं। परमात्मा को खोजने जा रहे हैं! अहंकार की बड़ी तृप्ति होती है! कहीं दूर उसकी झलक मिलती है तो जन्मों-जन्मों तक यात्रा करके वहां पहुंचते हैं, लेकिन तब तक वह कहीं और जा चुका होता है।
पर एक दिन मुश्किल हो गयी, उसके द्वार पर ही पहुंच गए। तख्ती लगी थी। पुराना जोश जन्मों-जन्मों का पाने का-एकदम चढ़ गए सीढ़ी। सांकल हाथ में ले ली। तभी समझ आयी, कि अगर वह मिल ही गया तो फिर क्या करेंगे! कहीं यह घर सच में ही उसका हुआ! धोखा हुआ, तब तो कोई अड़चन नहीं है, फिर
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