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देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है लगता है, और मैं सबसे ज्यादा लाओत्से से प्रभावित हूं। इसे कैसे सुलझाऊँ?
सु ल झा ना क्या है? अगर सुलझी-सुलझी बात को उलझाना हो, तो बात
-अलग। इसमें कहां समस्या है? कभी-कभी मैं हैरान होता हूं कि तुम कितने कुशल हो गए हो समस्या बनाने में! जहां नहीं होती वहां बना लेते हो! अगर ध्यान में मन लगता है तो समस्या क्या है? कौन तुमसे कह रहा है प्रेम में मन लगाओ? ध्यान में मन लग गया है, बस हो गयी बात। जिनका ध्यान में न लगता हो, वे प्रेम में लगाएं।
लेकिन मेरे पास लोग आ जाते हैं, वे कहते हैं : प्रेम में मन लगता है, ध्यान में नहीं लगता। बड़ी समस्या है! क्या करें?
अगर तुमने जिद्द ही बना ली है कि समस्या तुम बनाए ही चले जाओगे, तुम्हारी मौज है।
फिर से इस प्रश्न को गौर से सुनो, यह सभी का प्रश्न है:
'कभी-कभी भगवान बुद्ध और लाओत्से का बोध एक सा लगता है; मगर हैं दोनों एक-दूसरे के उलटे छोर पर। मेरी अपनी समस्या यह है कि मेरा स्वभाव प्रेम से ज्यादा ध्यान पर लगता है।'
इसमें समस्या कैसी है? यह तो समाधान है। छोड़ो प्रेम की बकवास। तुम्हारे लिए बकवास है, उसकी तुम चिंता में मत पड़ो। हां, अगर समस्या ही बनानी हो, बिना समस्या के रहना ही मुश्किल पड़ता हो, तो बात अलग! फिर तुम्हारी मर्जी!
'और मैं सबसे ज्यादा लाओत्से से प्रभावित हूं।'
इसमें भी क्या बुराई है? यह तो बहुत ही बढ़िया है। बुद्ध को भूल ही जाओ। लेना-देना क्या है? लाओत्से काफी है। __तुम्हारी हालत ऐसी है कि तुम बाएं रास्ते पर चलते हो तो दायां रास्ता समस्या बन जाता है, कि दाएं पर चलते! अगर दाएं पर चलते हो तो बायां समस्या बन जाता है। दोनों रास्तों पर एक साथ चलोगे भी कैसे? तुम अकेले हो, रास्ते बहुत हैं। अनेक रास्ते हैं, अगर सब पर चलना चाहा तो पागल हो जाओगे। इतना तो होश रखो कि जो जम जाए, उस पर चल जाना है।
मैं तुमसे बुद्ध, लाओत्से, महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट की बात कर रहा हूं, ताकि कोई तुम्हें जम जाए। मगर मैं जानता हूं, तुम खतरनाक हो। तुम बजाय किसी को जमाने के, अगर तुम कहीं थोड़े-बहुत जमे भी होओगे, तो उसको भी उखाड़ डालोगे। ___मैं तुम्हें सब रास्ते खोले दे रहा हूं, ताकि जिससे तुम्हारा तालमेल बैठ जाए, वहीं से तुम्हारी मंजिल आ जाए। कोई बुद्ध ने ठेका नहीं लिया है कि बुद्ध के साथ ही जाओगे तो ही पहुंचोगे। लाओत्से एकदम बढ़िया है। रास्ता ठीक है। तुम चल पड़ो।
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