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यात्री, यात्रा, गंतव्य : तुम्ही
वैसे ही आगे निकल जाता है जैसे तेज घोड़ा मंद घोड़े से आगे निकल जाता है।
लेकिन यह उदाहरण ठीक नहीं। क्योंकि तेज घोड़ा और मंद घोड़ा, उनके बीच जो भेद है वह मात्रा का है, गुण का नहीं। वह डिग्री का है, क्वांटिटी का है, क्वालिटी का नहीं। लेकिन सोए और जागे आदमी में जो भेद है वह गुणात्मक है, परिमाणात्मक नहीं। सोए और जागे हुए आदमी में जो भेद है वह आगे और पीछे का नहीं है, ऊपर और नीचे का है। जागा हुआ आदमी तुमसे जरा आगे है, ऐसा नहीं। तब तो तुम दोनों एक ही तल पर हो; कोई तुमसे दस कदम आगे है, तुम दस कदम पीछे हो; रास्ता वही है, भेद ज्यादा नहीं है। तुम थोड़ा तेज चलो-थोड़ा मंद घोड़ा भी दौड़ ले-तो पहुंच जाएगा। भेद मात्रा का है।
लेकिन जागे और सोए व्यक्ति में मात्रा का भेद नहीं है, गुण का भेद है। वे दोनों अलग तल पर हैं। इसलिए बुद्ध का पहला प्रतीक ठीक है कि जैसे पहाड़ पर कोई खड़ा है, और नीचे जनता मैदान में खड़ी है। ऐसा भेद है। दो तलों का भेद है। एक अलग ही आयाम है। और निश्चित ही जो तुमसे ऊपर है, वह तुमसे आगे तो होगा ही। लेकिन जो तुमसे आगे है, वह जरूरी नहीं कि तुमसे ऊपर हो।
इसे ऐसा समझो कि तुम थोड़ा जानते हो, कोई विद्वान तुमसे ज्यादा जानता है, वह तुमसे आगे है। तुम सौ बातें जानते हो, वह हजार बातें जानता है। फर्क मात्रा का है। नौ सौ बातें ज्यादा जानता है। तुमने एक शास्त्र पढ़ा, उसने हजार पढ़े। पर तुम दोनों में बुनियादी कोई भेद नहीं है। फिर एक प्रज्ञा को उपलब्ध व्यक्ति है। उसमें भेद ऐसा नहीं है कि तुमने एक शास्त्र पढ़ा, उसने हजार पढ़े। यह सवाल ही नहीं है। तुम सोए, वह जागा। तुम नींद में पड़े, वह होश में। तुम अंधेरे में खड़े, वह प्रकाश में। गुण का भेद है।
स्वभावतः, जो तुमसे ऊपर है वह तुमसे आगे तो होगा ही। इसलिए प्रज्ञावान पुरुष प्रतिभाशाली तो होगा ही, लेकिन प्रतिभाशाली पुरुष अनिवार्य रूप से प्रज्ञावान नहीं होता। तो जिन्होंने प्रज्ञा को खोजा उन्होंने प्रतिभा को तो मुफ्त पा लिया। वह तो छाया है। लेकिन जो प्रतिभा को ही खोजते रहे, उन्होंने प्रज्ञा को नहीं पाया।
तो तुम्हारा प्रतिभाशाली से प्रतिभाशाली पुरुष भी—कितना ही बड़ा वैज्ञानिक हो, नोबल-पुरस्कार का विजेता हो-उसमें और तुममें गुण का कोई फर्क नहीं होता। उसी रास्ते पर, उसी लकीर में तुम भी खड़े हो, जहां वह खड़ा है। तुमसे आगे है, तेज घोड़ा हो सकता है, तुम मंद घोड़े हो, लेकिन दोनों घोड़े हो।
बुद्ध की मजबूरी है। वे कहना यह चाहते हैं कि जिस व्यक्ति के पास जागरण की कला है, उसके पास अनंत समय उपलब्ध हो जाता है उसे। तुम्हारे पास हमेशा समय कम है। तुम हमेशा समय को रोते मालूम पड़ते हो। तुमसे अगर कहो प्रार्थना करो, ध्यान करो, तुम कहते हो समय कहां?
मैं कल दो पंक्तियां पढ़ रहा था
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