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एस धम्मो सनंतनो
जैसे सर्दी की रात अगर तुमने किसी को कहा है सुबह उठा देना, हालांकि तुमने ही कहा है, लेकिन सुबह जब वह तुम्हें उठाता है तो मन में नाराजगी आती है कि यह दुष्ट आ गया। कहा तुम्हीं ने था। तो जब साधारण सर्दी की रात में सुबह उठने में ऐसी कठिनाई हो जाती है—लोग अलार्म घड़ी को उठाकर पटक देते हैं। अलार्म घड़ी का क्या कसूर है? तुम्हीं ने भरा था अलार्म, तुम्हीं ने बिस्तर के पास रखी थी! तो तुम सोचो, जो जन्मों-जन्मों की, जीवन-जीवन की तंद्रा के बाद कोई बुद्धपुरुष से तम्हारा सौभाग्य से मिलना हो जाता है, तो तुम्हें दुर्भाग्य ही मालूम पड़ता है, कि यह और कहां की मुसीबत हो गयी! चुपचाप मजे से सपना लिए जा रहे थे, एक करवट और लेते, थोड़ा और सो लेते।
ध्यान रखो, अगर तुम बुद्धपुरुषों की वाणी भी सुनते रहो, तो भी धीरे-धीरे तुम पाओगे तुम्हारे आसपास जो झूठ का एक जाल था वह खिसकना शुरू हो गया। सत्य की एक किरण भी गहन से गहन अंधेरे को तोड़ने में समर्थ है। छोटी सी किरण, जन्मों का अंधेरा भी टूट जाता है।
_ 'प्रमाद में मत लगे रहो। कामरति का मत गुणगान करो। प्रमादरहित व ध्यान में लगा पुरुष विपुल सुख को प्राप्त होता है।'
एक ही सुख है। और वह सुख है स्वयं में रमण। एक ही सुख है, वह सुख दूसरे में रमण का नहीं है।
कामवासना का सार है, दूसरे में सुख की आशा। ध्यान का सार है, स्वयं में सुख की खोज। बस ये दो ही यात्राएं हैं। या तो दूसरे को खोजो, या अपने को। जिसने दूसरे को खोजा, वह अपने को न खोज पाया। जिसने अपने को खोजा, उसे दूसरे की खोज की जरूरत ही न रही। जिसने अपने को पा लिया, उसने सब पा लिया।
एक सूफी फकीर हुआ बहाउद्दीन। उसकी बड़ी ख्याति थी। उसके शब्द बड़े गहरे थे। उसका व्यक्तित्व बड़ा अनूठा था। दूर-दूर से लोग यात्रा करके उसके पास आते। लेकिन सभी ठीक कारणों से आते थे, ऐसा नहीं। क्योंकि कारण तो तुम्हारे भीतर होता है।
एक आदमी उसके पास इसीलिए आ गया था और शिष्य हो गया था, कि कैसे मैं भी इतना प्रभावशाली हो जाऊं, जैसा बहाउद्दीन है। बहाउद्दीन ने उसे देखते ही से कहा कि तुम गलत कारण से सही जगह आ गए हो। उस आदमी न कहा, क्या मतलब? बहाउद्दीन ने कहा कि तुम अपने को बदलने नहीं आए हो, अपने को सजाने आ गए हो। और तुम मेरे पास ध्यान करने नहीं आए हो, तुम्हारी उत्सुकता अभी भी पर में है। तुम दूसरों को प्रभावित करना चाहते हो। और यही तो ध्यान के विरोध में है। तुम सोच-समझकर आओ। उस आदमी को बात तो सही लगी कि वह आया तो इसीलिए है कि दूसरे उससे कैसे प्रभावित हों, कैसे वह भी एक गुरु हो जाए।
गुरु होने की आकांक्षा कामवासना है, बहाउद्दीन ने कहा। क्योंकि तुम्हारी नजर
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