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यात्री, यात्रा, गंतव्य : तुम्ही
ही सीटी की आवाज सुनकर हिम्मत बढ़ जाती है। जैसे कि अकेले नहीं हो। गाना गुनगुनाने लगते हो, अपने ही गाने की गर्मी शरीर में आ जाती है, लगता है जैसे अकेले नहीं हो।
तुमने अपने जीवन को अपने ही सुझावों से भर लिया है। तुम उन्हीं में गिरे हो, उन्हीं में दबे हो।
तुम्हारा सुझाव ही तुम्हारा संसार है। तुम्हारा आत्मसम्मोहन, ऑटोहिप्नोसिस ही तुम्हारा संसार है। और जब बुद्ध या शंकर कहते हैं, संसार माया है, तो तुम यह मत समझना कि इन वृक्षों, चांद-तारों के संबंध में कह रहे हैं। वे उस संसार के संबंध में कह रहे हैं जो तुमने अपने चारों तरफ खड़ा कर लिया है, जिसको तुमने ही अपने सपनों में रंग लिया है, जिसके रंग तुम्हारे मन के दिए हुए हैं। यह संसार तो बड़ा सत्य है। लेकिन इस संसार का तो तुम्हें पता ही नहीं है। तुम्हें तो वही दिखायी पड़ता है, जो तुम देखना चाहते हो। तुम्हें तो वही दिखायी पड़ता है, जिसकी तुम कामना करते हो। __ पूरी मनुष्य-जाति कामरति के गुणगान में पागल हुई जा रही है। तुम्हारे कवि, सौ में से निन्यानबे प्रतिशत कामवासना का गुणगान करते हैं। तुम्हारे उपन्यासकार कामवासना के शास्त्र लिखते हैं। तुम्हारे फिल्म-निर्माता कामवासना की फिल्में बनाते हैं। हर चीज कामवासना के आसपास घूम रही है। अगर कार भी बेचनी हो तो एक नग्न स्त्री को या सुंदर स्त्री को उसके पास खड़ा करना पड़ता है। कार नहीं बिकती, सुंदर स्त्री बिकती है। कुछ भी बेचना हो, दंतमंजन बेचना हो, कि टूथपेस्ट बेचना हो, तो एक स्त्री के हंसते हुए दांत दिखायी पड़ने चाहिए। वे दांत बिकते हैं। कुछ भी, छोटी सी चीज से लेकर बड़ी चीज तक, सारे बाजार में कामवासना बिकती है।
और फिर तुम राम को पाना चाहते हो, मुश्किल में पड़ जाते हो। अपना ही दलदल खड़ा कर लेते हो, उसमें खुद ही उलझ गए हो।
बुद्ध कहते हैं, 'कामरति का मत गुणगान करो।'
क्योंकि वह गुणगान तुम्हें सुलाएगा, वह लोरी बन जाएगा और तुम प्रमाद में डूब जाओगे। अगर गुणगान ही करना हो तो निर्वाण का करो, मोक्ष की चर्चा करो। अगर गुणगान ही करना है तो सत्य का करो, सपनों का नहीं।
लेकिन सत्य को सुनने को कौन आता है ? सत्य का गुणगान सुनने की किसको इच्छा है ? सत्य की बात ही सुनकर कड़वी लगती है। क्योंकि सत्य तुम्हारे सपनों को तोड़ता है। सत्य दुश्मन जैसा मालूम पड़ता है। ____इसलिए तो बुद्धों को हम पत्थर मारते हैं, जीसस को सूली पर लटका देते हैं, सुकरात को जहर पिला देते हैं। हम बर्दाश्त नहीं करते इन लोगों को। ये खतरनाक हैं। हम मजे से सो रहे हैं, और गहरी नींद ले रहे हैं, और बड़े मधुर सपनों में डूबे हैं, और ये नासमझ आ-आकर जगाने लगते हैं कि जागो, सुबह हो गयी।
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