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________________ यात्री, यात्रा, गंतव्य : तुम्हीं इस पर है कि दूसरे मुझे कैसे मानें, कैसे पूजें? ध्यानी इस बात की चिंता करता है कि कैसे मैं स्वयं हो जाऊं। कोई पूजेगा, नहीं पूजेगा, यह उसके विचार में भी नहीं आता। कोई पूजेगा या पत्थर मारेगा, ये दूसरे समझें। ध्यानी अपने में डूबता है। उसको बात तो लगी। अब उसको बहाउद्दीन के सामने आना भी मुश्किल हो गया। तो वह छिपकर आने लगा यह देखने कि जरूर कोई तरकीब होगी इस आदमी की जिसकी वजह से इतने लोग प्रभावित हैं। एक दिन बहाउद्दीन ने अपने खीसे से एक हीरा निकाला और कहा कि यह हीरा ऐसा ही मूल्यवान है जैसा सत्य मूल्यवान होता है, और यह हीरा बड़ा चमत्कारी है। उस आदमी ने सोचा कि मिल गयी बात, यह इसी हीरे की वजह से यह आदमी इतना प्रभावी है। रात छिप गया वह। जब सब सो गए, वह अंदर गया। खीसे में से बहाउद्दीन के हीरा निकालकर भाग खड़ा हुआ। लेकिन हीरा लेकर उसने बड़ी कोशिश की, कोई प्रभावित न हो। हाथ में रखकर बैठा रहे, कोई पूजा न करे। वह बड़ा परेशान हुआ कि मामला क्या है? हीरा तो वही है। ऐसे वर्ष बीत गए। एक दिन बहाउद्दीन उसके द्वार पर आया और उसने कहा कि अब बहुत हो गया, अब वह हीरा वापस लौटा। उस आदमी ने कहा, लेकिन मैं इसी हीरे के बल पर बड़ा प्रभाव पैदा करने की कोशिश कर रहा हूं, कोई प्रभावित ही नहीं होता। मामला क्या है? बहाउद्दीन ने कहा, जब तक तू हीरा न हो जाए, तब तक तेरे हाथ में आया हीरा भी पत्थर हो जाएगा। और तू अगर हीरा हो गया, तो तेरे हाथ में आया हुआ पत्थर भी हीरा हो जाता है। तू कब तक बाहर की चीजों में परेशान रहेगा? इस हीरे में कुछ भी नहीं रखा है। तू इसे अब वापस लौटा दे। उस दिन जानता था कि तू छिपा है, इसलिए हीरा निकाला था, ताकि तुझसे छुटकारा हो। जब तू रात निकालकर ले गया जेब से, तब भी मैं जागा था। क्योंकि योगी कहीं सोता है? इसीलिए तो मुझे पता है कि हीरा कहां है। और तूने अब काफी दिन प्रयोग कर लिया, अब लौटा दे। और अब तो समझ, बाहर से नजर को भीतर हटा। हीरा मांगने नहीं आया हूं, तुझे बुलाने आया हूं कि अब तुझमें अकल आ जानी चाहिए। जीवन के दो ही ढंग हैं : या तो बाहर का हीरा या भीतर का हीरा। जीवन के दो ही मार्ग हैं : या तो तुम भिखारी की तरह खोजते रहो हाथ फैलाकर, भिक्षापात्र लिए, या तुम सम्राट हो जाओ-अपने भीतर झांको। 'प्रमाद में मत लगे रहो। कामरति का मत गुणगान करो। प्रमादरहित व ध्यान में लगा पुरुष विपुल सुख को प्राप्त होता है।' यह ध्यान की खोज क्या है? ध्यान की खोज उस मूल स्रोत की खोज है जो नितांत तुम्हारा स्वभाव है; जिसे 213
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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