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यात्री, यात्रा, गंतव्य : तुम्ही
उसने कहा कि आज मेरे लिए कुछ प्रार्थना करनी होगी। धर्मगुरु ने सोचा कि अब प्रार्थना करवाने आया है, तो कुछ दान करवा लेने का मौका है। लेकिन यहूदी कंजूस भी सोच-विचार कर ही आया था। पूछा धर्मगुरु ने, क्या प्रार्थना करनी है? उस कंजूस ने कहा कि मेरी पत्नी बीमार पड़ी है, मर जाए, यह प्रार्थना करनी है। धर्मगुरु ने कहा, दान क्या दोगे? उस कंजूस ने कहा कि जीवन अगर मांगता, तब तो दान मांगना उचित भी था। मौत मांग रहा हूं; इसके लिए भी दान देना पड़ेगा? कुछ तो संकोच करो-वह मौत मांगते संकोच नहीं कर रहा है-कुछ तो थोड़ा खयाल करो, कुछ तो दया करो।
धर्मगुरु ने देखा कि इतना आसान नहीं है मामला। उसने कहा, कुछ भी हो, मौत हो कि जीवन हो, प्रार्थना तो तभी हम करेंगे जब कुछ दान हो। उसने कहा, अच्छा एक रुपया दे देंगे। बहुत धर्मगुरु ने जोर डाला तो उसने कहा, दो रुपया दे देंगे। ऐसे कुछ बात बनती न दिखी तो धर्मगुरु ने कहा, सुनो! मौत की प्रार्थना की नहीं जा सकती। कोई उल्लेख ही नहीं है शास्त्र में कि किसी की मौत के लिए प्रार्थना कभी की गयी हो। परमात्मा से लोग जीवन की प्रार्थना करते हैं, मौत की नहीं। तुम मुझे क्षमा करो। यह काम मुझसे न हो सकेगा।
महाकंजूस ने कहा, छोड़ो भी ये बातें कानूनी, पांच रुपए दे सकता हूं। धर्मगुरु बोला कि नहीं, यह हो ही नहीं सकता, प्रार्थना तो जीवन की ही हो सकती है। लेकिन एक तरकीब तुम्हें मैं बता देता हूं-क्योंकि कानून में सब जगह तरकीब तो होती ही है-शास्त्रों में ऐसा कहा है कि अगर कोई आदमी मंदिर को दान का वचन दे और तीन महीने के भीतर दान न दे, तो उसकी पत्नी मर जाती है-दंडस्वरूप। तो तुम दान की घोषणा कर दो। देने की तो कोई जरूरत ही नहीं है। पत्नी तीन महीने के भीतर मर जाएगी। तो उस महाकंजूस ने कहा कि जब देना ही नहीं है, तो उसने कहा तब ठीक है, तब एक लाख रुपया दान दे देंगे। जब देना ही नहीं है! धर्मगुरु ने कहा, जब देना ही नहीं है तो क्या लाख क्या दस लाख? अरे, दस लाख ही कह दो! थोड़ा सकुचाया, क्योंकि कल्पना में भी देना कष्टकर मालूम होता है। उसने कहा, दस लाख ज्यादा हो जाएंगे। पर धर्मगुरु ने कहा, जब देना ही नहीं है, तो जैसा एक लाख वैसा दस लाख। वह बड़े बेमन से राजी हुआ। लौट गया घर। __पत्नी मरी तो नहीं; बीमार थी, ठीक हो गयी। वह बड़ा चकित हुआ। तीन महीने पूरे हुए, वह वापस आया। उसने कहा कि यह नियम तो काम नहीं किया। धर्मगुरु ने कहा कि देखो, शास्त्र कहता है-दंडस्वरूप, एज ए पनिशमेंट। मगर तुम तो चाहते हो कि पत्नी मर जाए। इसलिए यह तुम्हें दंड तो न होगा, यह तो पुरस्कार हो जाएगा। इसलिए प्रार्थना व्यर्थ गयी। अगर तुम सच में ही चाहते हो पत्नी मर जाए, तो तुम अब ऐसा करो कि जाकर बाजार से कुछ हीरे-जवाहरात खरीदो, कुछ सुंदर साड़ियां खरीदो, पत्नी को भेंट करो। पत्नी तुम्हारे प्रति इतनी प्रेम से भर जाए और
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