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________________ एस धम्मो सनंतनो ढंढ़ ता फिरता हूं ऐ इकबाल अपने आपको आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंजिल हूं मैं खोज किसकी है? किसी और की नहीं, अपनी ही। पाना किसे है? वह बाहर नहीं है, भीतर है। जिसे हम तलाश रहे हैं वह हमारा स्वभाव है। इसलिए यात्रा पदयात्रा नहीं है, यात्रा आत्मयात्रा है। यात्रा किसी और तक पहुंचने की नहीं है, यात्रा अपने तक ही पहुंचने की है। जो मिला ही हुआ है, उसके प्रति जागना है। संपदा खोजनी नहीं है, सिर्फ आंख खोलनी है। ढूंढ़ता फिरता हूं ऐ इकबाल अपने आपको आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंजिल हूं मैं यात्री भी तुम्ही हो; यात्रा भी तुम्हीं हो; यात्रा का लक्ष्य और गंतव्य भी तुम्ही हो। इसलिए बिना कहीं जाए भी पहुंचना हो सकता है। जहां बैठे हो वहीं बैठे-बैठे भी पहुंचना हो सकता है। जरा भी बिना हिले-डुले भी पहुंचना हो सकता है। ___ और जो बाहर खोजने गए वे भटक गए। यात्रा पहले कदम से ही गलत हो गयी। जिन्होंने सोचा बाहर है, पहले से ही चूक गए। कहीं जाना नहीं, अपने पास आना है। कहीं खोजना नहीं, अपने भीतर जागना है। और जिसे यह बात समझ में आ गयी, वह तथाकथित धर्म के जाल से मुक्त हो जाता है। __ और ध्यान रखना, अधर्म से मुक्त होना कठिन नहीं है, धर्म से मुक्त होना कठिन है। अधर्म तो अंधेरा जैसा है, दीया जलते ही अपने आप नष्ट हो जाता है। लेकिन तथाकथित धर्म राह पर पड़ी पत्थर की चट्टानों जैसा है। सिर्फ दीए के जलने से ही दूर नहीं हो जाता है। और तथाकथित धर्म का बड़ा गहरा जाल प्रत्येक व्यक्ति के पास है। तुम्हें ऐसा व्यक्ति खोजना मुश्किल होगा जो न हिंदू है, न मुसलमान है, न ईसाई है, न जैन है, न बौद्ध है, न सिक्ख है। कोई न कोई जाल पास है। खालिस आदमी खोजना मुश्किल है। और खालिस आदमी ही स्वयं तक आ सकता है। जिसे तुमने धर्म समझा है, वह तुम्हारे बाजार का ही हिस्सा है। और जिसे तुमने मंदिर समझा है, वह परमात्मा के नाम की दुकान है। कुछ दिन पहले मैं एक कहानी पढ़ता था। एक गांव में एक महाकंजूस था। यहूदी। या कहें मारवाड़ी। उसने कभी एक पैसा दान न दिया। गांव में भिखारी भी उसके घर की तरफ नहीं जाते थे। अगर कोई नया भिखारी उसके घर की तरफ जाता, तो लोग समझ जाते कि नया भिखारी है। जिसको थोड़ा भी पता है, वह कभी भीख मांगने उसके द्वार पर न जाएगा। उसने कभी दिया ही नहीं। वह भिखारी से भी कुछ छीन सकता था। देना उसकी आदत न थी। लेकिन एक दिन वह गांव के धर्मगुरु के द्वार पर पहुंचा। यहूदी धर्मगुरु। और 204
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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