SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो पर ध्यान मत देना। अपने चित्त को पहचानने की फिकर करना । कहीं ऐसा न हो कि तुम जा सकते थे प्रेम से और ध्यान की कोशिश करो, तो फिर तुम सफल न हो पाओगे। तुम्हारे स्वभाव के विपरीत कुछ भी सफल नहीं हो सकता। इसलिए मार्ग पर साधकों के लिए सबसे बड़ी जो बात है, वह यही जान लेना है कि उनका क्या प्रकार है । और इसलिए गुरु अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि तुम कैसे पहचानो कि क्या तुम्हारा प्रकार है? अपने से इतनी दूरी नहीं कि अपना निरीक्षण कर सको। कोई चाहिए, जो रास्ते से गुजर चुका हो। कोई चाहिए, जो तुम्हें दूर से खड़े होकर देख सके और पहचान सके, और तुमसे कह सके कि तुम्हारा प्रकार क्या है । क्योंकि सबसे बड़ी बात वहीं घटती है। अगर प्रकार ठीक तालमेल खा गया, तो जो जन्मों में नहीं घटता वह क्षणों में घट जाता है । और अगर तुम प्रकार के विपरी चेष्टा करते रहे, तो जो क्षणों में घट सकता था वह जन्मों में भी नहीं घटता है। मेरे अनुभव में, मेरे देखने में, तुम अपने पापों या कर्मों के कारण इतने नहीं भटकते हो, जितना गलत विधि चुनने के कारण भटकते हो। अनुकूल को चुन लेना बड़ा आवश्यक है। प्रतिकूल को चुनना ऐसा ही है जैसे कोई गुलाब का फूल कमल होने की कोशिश कर रहा हो। वह कमल तो हो ही न पाएगा, गुलाब भी न हो पाएगा, क्योंकि कोशिश में सब ऊर्जा व्यर्थ हो जाएगी। गुलाब का फूल गुलाब ही हो सकता है। कमल का फूल कमल ही हो सकता है। मगर न तो कमल का सवाल है न गुलाब का, असली सवाल खिल जाने का है। प्रेम से खिलो कि ध्यान से खिलो, कोई फर्क नहीं पड़ता । आखिरी हिसाब में खिल गए, बंद - बंद न मर गए। बंद बंद मरे तो वापस आना पड़ेगा, खिलकर मरे तो वापसी नहीं है । जो खिलकर गया, वह सदा के लिए गया। वह फिर स्वीकार हो गया । इसलिए तो हम परमात्मा के चरणों में जाकर फूल चढ़ाते हैं। वह सिर्फ प्रतीक है कि उसके चरणों में केवल वे ही स्वीकार होंगे जो फूल की तरह खिलकर जाते हैं। जो बीज की तरह ही हैं उनको तो वापस आना पड़ेगा। निर्वाण का अर्थ है, खिल जाना। जो भीतर था, वह प्रगट हो गया; जो अनभिव्यक्त था, वह अभिव्यक्त हो गया; जो गीत अनगाया पड़ा था, वह गा लिया गया; जो नाच अननाचा पड़ा था, वह नाच लिया गया। जिस दिन भी तुम्हारी नियति पूरी हो जाती है, तुम सौरभ से भर जाते हो, तुम्हारी पखुड़ियां खिल जाती हैं— उसी दिन तुम स्वीकार हो जाते हो। तुमने अर्जित कर लिया मोक्ष। तुमने कमा लिया मोक्ष । अस्तित्व अपनी बांहें फैलाकर तुम्हारा स्वागत करता है। सारा अस्तित्व उत्सव मनाता है जिस दिन एक व्यक्ति भी बुद्धत्व को उपलब्ध होता है। क्योंकि सारा अस्तित्व सदियों तक प्रतीक्षा करता है, तब कहीं करोड़ों लोगों 200
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy