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प्रेम है महामृत्यु
झूसिया नाम का हसीद फकीर मरा। वह स्वर्ग के द्वार पर खड़ा है, निर्वाण के द्वार पर। वह भीतर नहीं जाता। वह कहता है, भीतर जाकर भी क्या करेंगे! जो पाना था वह पा लिया। और फिर अभी बहुत लोग हैं जिनको मेरी जरूरत है। स्वयं परमात्मा चिंतित हो गया है। कोई रास्ता नहीं है झूसिया को समझाने का कि तुम भीतर आ जाओ। परमात्मा सिंहासन पर बैठा है। द्वार से झूसिया देख रहा है। परमात्मा कहता है, भीतर आ जाओ। झूसिया कहता है, क्या करेंगे? देख लिया, पा लिया। अभी दूसरों को सहायता देनी है। जो मिला है उसे बांटना है। मुझे यहीं रुकने दें। मुझ पर दया करें। द्वार बंद कर लें।
कोई रास्ता न देखकर, परमात्मा यहूदियों की किताब 'तोरा' अपने हाथ में रखे है, उसने किताब छोड़ दी। वह किताब जमीन पर गिरी। पुरानी आदतवश झसिया भागा; क्योंकि 'तोरा' गिर जाए तो उसे उठाना चाहिए। वह किताब उठाने गया, दरवाजा बंद कर दिया गया। तब से वह बाहर नहीं निकल पाया। परमात्मा को तरकीब लगानी पड़ी-'तोरा' गिराना पड़ा।
कहानी बड़ी मीठी है। झूसिया वहीं रुक जाना चाहता था-समाधि पर; निर्वाण तक नहीं जाना चाहता था। लेकिन कोई उपाय करना ही पड़ेगा, समाधि पर कोई रुक नहीं सकता। फल जब पक गया तो गिरेगा ही। फल कितना ही चाहे, पर अब रुकने का कोई उपाय न रहा। पक जाना गिर जाना है। समाधिस्थ हो जाना निर्वाण हो जाना है।
पर निर्वाण के पहले ये तीन घटनाएं घटती हैं। पहले एक सातत्य बनता है भीतर अचेतन मन में; फिर चेतन में झलकें आनी शुरू होती हैं; फिर कोई द्वार पर खड़ा हो जाता है; फिर सब खो जाता है। फिर न जानने वाला बचता, न जाना जाने वाला बचता; न ज्ञाता, न ज्ञेय; न भक्त, न भगवान; फिर वही रह जाता है जो है। कृष्णमूर्ति जिसे कहते हैं, दैट व्हिच इज। वही रह जाता है जो है। निःशब्द! अनिर्वचनीय! वही मंजिल है। वही पाना है। . पाने के दो उपाय मैंने तुमसे कहे : या तो प्रेम से। संभव हो सके, तो प्रेम का रास्ता बड़ा हरा-भरा है, वहां इंद्रधनुष हैं और फूल खिलते हैं और झरनों में कल-कल नाद है, और गीत का गुंजार है, और नृत्य भी है। अगर नहीं, तो ध्यान का मार्ग है। ध्यान का मार्ग थोड़ा मरुस्थल जैसा है। उसका अपना सौंदर्य है। उसकी अपनी स्वच्छता है। उसका अपना विस्तार है। लेकिन थोड़ा रूखा-सूखा है। वहां काव्य नहीं है, हरियाली नहीं है, मरूद्यान नहीं है। पर प्रत्येक को अपने को ध्यान में रखना है कि उसको कौन सी बात ठीक पड़ेगी।
स्त्रैण चित्त प्रेम के मार्ग से जा सकेगा। और कई पुरुषों के पास स्त्रैण चित्त है; वे भी प्रेम से ही जा सकेंगे। पुरुष चित्त ध्यान से जा सकेगा। और कई स्त्रियों के पास पुरुष चित्त है; वे भी ध्यान से ही जा सकेंगी। इसलिए शरीर से स्त्री और पुरुष होने
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