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एस धम्मो सनंतनो
है, शांत होता है, आनंदित होता है। सध जाता है किसी दिन। किसी दिन नहीं सधता, चूक जाता है, बड़ी दूरी हो जाती है। ऐसा कई बार पास आना और कई बार दूर होना हो जाता है।
लेकिन, जिसको झलकें मिलने लगीं, जरा-जरा स्वाद आने लगा, वह अब भटक नहीं सकता। अब एक बात तो पक्की हो गयी कि जिसकी तलाश है, वह है; जिसको खोजते थे, वह कल्पना नहीं है; जिसकी तरफ चले थे, वह चाहे मिले न जन्मों-जन्मों तक भी अब, लेकिन है। श्रद्धा का आविर्भाव होता है। और जैसे ही श्रद्धा का आविर्भाव होता है, सतोरी धीरे-धीरे समाधि बनने लगती है। श्रद्धा और सतोरी का जुड़ जाना समाधि है। एक बात तो पक्की हो गयी, बिजली चमक गयी अंधेरी रात में, दिखायी पड़ गया कि रास्ता है, और दूर मंदिर के कलश भी दिखायी पड़ गए। फिर बिजली खो गयी, अंधेरा फिर हो गया; लेकिन अब एक बात पक्की है कि मंदिर है। उसके स्वर्ण-कलश दिखायी पड़ गए। एक बात पक्की है कि रास्ता है। फिर टटोल रहे हैं अंधेरे में, मिले न मिले; कभी मिल भी जाए, कभी फिर भटक जाए–लेकिन रास्ता है, मंदिर है। अब चाहे जन्म-जन्म लग जाएं, लेकिन हम व्यर्थ ही नहीं खोज रहे हैं। सत्य है। परमात्मा है। आत्मा है। निर्वाण है।
और जैसे ही यह अनुभव होने लगता है कि है, वैसे-वैसे कदमों का बल बढ़ जाता है; खोज की त्वरा बढ़ जाती है; सब कुछ दांव पर लगा देने की हिम्मत आ जाती है।
फिर तुम मंदिर के द्वार पर पहुंच गए। सूरज उग गया। अब तुम द्वार पर खड़े हो। सब सीढ़ियां पूरी हो गयीं। यह समाधि की अवस्था है—प्रवेश के एक क्षण पहले। इसके बाद निर्वाण है। इसके बाद फल गिर जाता है। तुम प्रविष्ट हो गए।
द्वार पर भी कोई रुक सकता है। द्वार पर रुकने का कारण वासना नहीं होती, द्वार पर रुकने का कारण करुणा हो सकती है।
बुद्ध के जीवन में उल्लेख है। निर्वाण के द्वार पर वे आ गए हैं। द्वार खोल दिया गया। लेकिन वे पीठ फेर कर खड़े हो गए हैं। कहानी है, पर बड़ी मधुर है, और बुद्धत्व के संबंध में बड़ी सूचक है। द्वारपाल ने कहा, आप भीतर आएं। हम कितने युगों से आपकी प्रतीक्षा करते हैं। कितने युगों से आपका निरीक्षण करते हैं कि प्रति कदम आप आते जा रहे हैं करीब। बुद्ध ने कहा, लेकिन मेरे पीछे बहुत लोग हैं। अगर मैं खो गया शून्य में, तो उनके लिए मैं कोई सहारा न दे सकंगा। मुझे यहीं रुकने दो। मैं चाहूंगा कि सब मुझसे पहले प्रवेश हो जाएं निर्वाण में, फिर अंतिम मैं रहूं।
ऐसा होता है, ऐसा नहीं है। ऐसा हो नहीं सकता। लेकिन यह महाकरुणा का प्रतीक है। कल मैं एक कहानी पढ़ रहा था एक यहूदी फकीर की, जो इससे भी मीठी है।
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