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प्रेम है महामृत्यु
में से कोई एक पहुंच पाता है। और सभी पहुंचने के हकदार थे। सभी पहुंचने को ही हैं। सभी को पहुंचना ही चाहिए। दुर्भाग्य है कि लोग न मालूम दूसरे कामों में उलझ जाते हैं, व्यर्थ के कामों में उलझ जाते हैं; सार को नहीं पहचान पाते, असार को नहीं पहचान पाते।
बुद्ध कहते हैं, जिसने सार को सार की तरह जान लिया, असार को असार की तरह जान लिया-वही, वही उपलब्ध हो पाता है।
आज इतना ही।
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