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________________ प्रेम है महामृत्यु ही पूछेगा कि सिक्के का सिर ऊपर की तरफ है कि नीचे की तरफ है। सिक्का सिक्का है। प्रेम की दुनिया में बेहोशी बाहर होगी, होश भीतर होगा। ध्यान की दुनिया में होश बाहर होगा, बेहोशी भीतर होगी। और दोनों समान होंगी। दोनों का बराबर बल होगा। तराजू के दोनों पलड़े समान होंगे। जहां बेहोश और होश दोनों मिल जाते हैं, वहीं वह परम घटना घटती है, जिसे हम निर्वाण कहें, मोक्ष कहें, ब्रह्मोपलब्धि कहें। फिर सब भेद नामों के हैं, शब्दों के हैं। तीसरा प्रश्नः तुम न जाने किस जहां में खो गए हम तेरी दुनिया में तनहा हो गए तुम न जाने किस जहां में खो गए मौत भी आती नहीं सांस भी जाती नहीं दिल को ये क्या हो गया कोई अब भाता नहीं लूट कर मेरा जहां छुप गए हो तुम कहां तुम कहां, तुम कहां, तुम कहां... तुम न जाने किस जहां में खो गए तरु ने पूछा है। प्रेम खोने का रास्ता है! और वही प्रेम परमात्मा तक ले जाएगा, जो खोना सिखाए। वही प्रेमी तुम्हें परमात्मा तक ले जा सकेगा, जो खुद भी धीरे-धीरे खोता जाए और तुम्हें भी खोने के लिए राजी करता जाए। प्रेम के मार्ग पर मिट जाना ही पाना है। कठिन होता है मिटना। पीड़ा होती है। बचा लेने का मन होता है। लेकिन जिसने बचाया उसने गंवाया। जो मरने को राजी है, वही प्रेम को जान पाया। प्रेम मृत्यु है, और बड़ी मृत्यु है; साधारण मृत्यु नहीं है जो रोज घटती है। वह मर जाना भी कोई मर जाना है! क्योंकि तुम तो मरते ही नहीं, शरीर बदल जाता है। लेकिन प्रेम में तुम्हें मरना पड़ता है, शरीर वही रहा आता है। इसलिए प्रेम बड़ी मृत्यु है, महामृत्यु है। 189
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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