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एस धम्मो सनंतनो
ज्योति जलती थी।
प्रेम के मार्ग पर बाहर से जो बेहोशी दिखायी पड़ेगी वह भीतर होश है। बड़ी प्रसिद्ध पंक्तियां हैं
मेरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साकी
जो हुशियारी और मस्ती में इम्तियाज करे वह पीने वाला ही नहीं है, जो अभी होश और बेहोशी में फर्क करे।
मेरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साकी उसने अभी पीना ही नहीं जाना, वह पियक्कड़ नहीं है, वह अभी मतवाला नहीं है, अभी मधुशाला को पहचाना ही नहीं।
जो हुशियारी और मस्ती में इम्तियाज करे जो होश में और बेहोशी में फर्क करे, उसने अभी पीना ही नहीं सीखा।
प्रेम के रास्ते पर होश और बेहोशी एक हो जाते हैं। यही ध्यान के रास्ते पर भी घटता है, लेकिन स्वाद अलग है। महावीर बैठे हैं या बुद्ध बैठे हैं, तुम उन्हें परिपूर्ण होश में पाओगे, लेकिन भीतर उनके ऐसा नशा बह रहा है जैसा नशा इस जमीन पर कभी-कभी बहता है। भीतर उन्हें वह परम मधुशाला उपलब्ध हो गयी है। भीतर वर्षा हो रही है मधु की। भीतर आनंद में सराबोर हैं। बाहर से बिलकुल होश सधा है, भीतर डूबे हैं। ठीक उलटा मालूम होगा। बुद्ध बाहर से होशपूर्ण मालूम होते हैं, भीतर डूबे हैं। चैतन्य, मीरा, रामकृष्ण बाहर से बेहोश मालूम होते हैं, भीतर होश में हैं। ___ ध्यान के मार्ग से जो चलेगा, होश बाहर होगा, भीतर बेहोशी होगी। प्रेम के मार्ग से जो चलेगा, बेहोशी बाहर होगी, होश भीतर होगा। पर दोनों साथ-साथ हैं।
होश की आखिरी जो घड़ी है, वह बेहोशी की भी आखिरी घड़ी है। क्यों? क्योंकि जहां पता चलता है मैं कौन हूं, वहीं तो 'मैं' मिट जाता है। जहां 'मैं' मिटता है, वहीं तो पता चलता है कि मैं कौन हूं। शून्य जहां हम हो जाते हैं वहीं तो पूर्ण का पदार्पण होता है। और जहां पूर्ण आता है वहां सब शून्य हो जाता है। उस अंतिम घड़ी में, उस आखिरी शिखर पर, उस गौरीशंकर पर सब भेद, सब द्वैत गिर जाता है। सब द्वंद्व विलीन हो जाते हैं। वहां न होश होश है, न बेहोशी बेहोशी है। ठीक कहा है यह
मेरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साकी
जो हुशियारी और मस्ती में इम्तियाज करे अगर तुम बुद्ध के सामने रामकृष्ण को रखोगे तो वे पहचान लेंगे। अगर तुम रामकृष्ण को बुद्ध को पहचानने को कहोगे, रामकृष्ण भी पहचान लेंगे।
ऐसा ही समझो कि तुम्हारे हाथ में एक सिक्का है, किसी ने सीधा रखा है हाथ में, किसी ने उलटा रखा है-इससे क्या फर्क पड़ता है ? सिक्का दोनों के हाथ में है, दोनों बाजार में जाएंगे, सिक्के का बराबर मूल्य मिल जाएगा। कोई यह थोड़े
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