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________________ एस धम्मो सनंतनो राबिया ने कहा, नाराज मत हो। किसी और ने नहीं की, मैंने ही की है। वह तो विश्वास भी न कर सका। उसने कहा कि तुझ जैसी भक्त, और तूने यह किया! उसने कहा, मैं क्या करूं? मेरी मजबरी है। जब से परमात्मा से प्रेम लगा, जब से आशिकी बनी, तब से अब कोई शैतान दिखायी नहीं पड़ता। अब तो शैतान भी मेरे सामने खड़ा हो तो मुझे परमात्मा ही दिखायी पड़ेगा। इसलिए शैतान को घृणा करो, अब इस वाक्य का क्या अर्थ रहा? इसको मैंने काट दिया, मेरे काम का नहीं है। जब तक शैतान दिखायी पड़ता था तब तक काम का हो भी सकता था, अब किस काम का है? प्रेम की पहचान बढ़ती जाए तो धीरे-धीरे तुम पाओगे कि इसी संसार में रंग-ढंग. बदलने लगे जीवन के। पक्षी वही हैं, लेकिन गीत के अर्थ बदल गए। अब पक्षियों की गुनगुनाहट नहीं है, वेदों का उच्चार है। फूल अब भी वही हैं, लेकिन रंग बदल गए; अब सिर्फ फूल नहीं हैं, अब परमात्मा की खबर हैं। झरने अब भी बहेंगे और कलकल नाद करेंगे, लेकिन अब ये परमात्मा के पैरों के बजते हुए पायल हैं। सब बदल गया। प्रेम जिसने किया उसने संसार को रूपांतरित कर लिया। ___ तुम्हारी दृष्टि में तुम्हारा संसार है। और ध्यान रखना, अगर प्रेम पर कहीं भूल-चूक हो गयी और प्रेम पहला कदम है परमात्मा की तरफ, अगर वहीं भूल-चूक हो गयी तो तुम कितना ही चलो, पहुंच न पाओगे। सिर्फ एक कदम उठा था गलत राहे-शौक में प्रेम के रास्ते पर सिर्फ एक गलत कदम उठा। . मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूंढ़ती रही फिर मेरा ढूंढ़ना तो ठीक ही है, फिर मंजिल भी मुझे ढूंढ़ती रही तमाम उम्र, तो भी मुझे पा न सकी। (सिर्फ एक कदम उठा था गलत राहे-शौक में __ मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूंढ़ती रही । प्रेम के संबंध में बहुत-बहुत होश रखना। वहीं भूल हो गयी तो परमात्मा से तुम सदा के लिए चूके। उसे सुधारोगे तभी परमात्मा की तरफ बढ़ पाओगे। प्रेम के बिना न कोई प्रार्थना है, न कोई परमात्मा है। इसलिए मैं तुम्हें सिर्फ एक ही सूत्र देता हूं, कि तुम अबाध प्रेम करो, कि तुम बेशर्त प्रेम करो, कि तुम जितने गहरे प्रेम में उतर सको उतने गहरे उतरो। ध्यान व्यर्थ पर मत दो, प्रेम में जो सार्थक स्वर हो उसको मुक्त कर लो। प्रेम में जो हीरा हो उसे निकाल लो, मिट्टी को पड़ा रह जाने दो। प्रेम में जो कमल हो उसे जगा लो, कीचड़ को पड़ा रह जाने दो। और जिस दिन कमल जग आएगा कीचड़ से, तुम कीचड़ के प्रति भी धन्यवाद 186
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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