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प्रेम है महामृत्यु
महाभोग है। जीवन उत्सव है। ___ मैं तुमसे यही कहता हूं कि जब विराट तुम्हारे भीतर उतरेगा, क्षुद्र अपने आप बह जाएगा। तुम विराट का भरोसा करो, क्षुद्र का भय नहीं। तुम विराट को निमंत्रण दो, क्षुद्र को हटाओ मत। ध्यान रखो, क्षुद्र से लड़ोगे, क्षुद्र हो जाओगे। क्षुद्र का बहुत चिंतन करोगे-कैसे इसे छोड़ें, कैसे इससे मुक्त हों-उतने ही बंधते चले जाओगे। क्षुद्र का चिंतन भी क्या करना, मनन भी क्या करना! क्षुद्र बांधेगा भी क्या! उसकी सामर्थ्य भी क्या है! कूड़ा-कर्कट को कोई छोड़ने जाता है, त्यागने जाता है? हीरों को खोजने चलो।
धर्मगुरुओं ने निषेधात्मक धर्म दिया है; मैं तुम्हें विधेय दे रहा हूं। मैं तुमसे कहता हूं, छोड़ना जरूरी नहीं है, पाना जरूरी है। और जिसने पा लिया, उसने छोड़ा। तेन त्यक्तेन भुंजीथाः। जब तुम्हें बड़ा धन मिलता है तो छोटा धन अपने आप छूट जाता है। फिर छोड़ने की पीड़ा भी नहीं होती। त्याग भी मालूम नहीं पड़ता, क्योंकि त्याग भी पीड़ा है। और उस त्याग का क्या मजा जिसमें पीड़ा हो? वह त्याग सच्चा भी नहीं है, जिसमें पीछे थोड़ा दंश छूट जाए। ___ जीवन ऐसा सहज होना चाहिए कि तुम रोज-रोज परमात्मा में आगे बढ़ते जाओ, रोज-रोज संसार तुमसे अपने आप पीछे हटता जाए; तुम्हें संसार को धकाना न पड़े, तुम्हें संसार से लड़ना न पड़े।
दो ही उपाय हैं : या तो संसार से घृणा करो, या परमात्मा से प्रेम करो। घृणा करनी तुम्हें भी आसान है, क्योंकि घृणा में तुम भी निष्णात हो। इसलिए धर्मगुरुओं की बात तुम्हें जम गयी। तुमने कहा, यह तो ठीक है, घृणा तो हम कर सकते हैं। जब मैं तुमसे प्रेम की बात कहता हूं तो तुम घबड़ाते हो, क्योंकि प्रेम का तुम्हें खुद भी भरोसा नहीं है कि तुम कर सकते हो। पर मैं तुमसे कहता हूं, कर सकते हो। माना कि तुम्हारा प्रेम बड़ी गंदगी में दबा पड़ा है, पर है, मौजूद है। और घबड़ाओ मत, कूड़े-कर्कट से, मिट्टी से, कीचड़ से कमल निकल आता है। कीचड़ में कमल छिपा. है। थोड़ी खोज की जरूरत है। और फिर कमल और कीचड़ का क्या तुम संबंध जोड़ पाओगे! कहां कमल, कहां कीचड़!
धर्मगुरु तुमसे कह रहे हैं, कीचड़ छोड़ो। उनकी बात तुम्हें भी जंचती है कि इस कीचड़ को घर में क्या रखना, छोड़ो। मैं तुमसे कहता हूं, इस कीचड़ में कमल छिपा है। छोड़ो मत, उपयोग कर लो। उपयोग में ही छूट जाएगा। जब कमल मिल जाएगा तो कीचड़ छूट ही गयी। लेकिन ऐसा न हो कहीं कि कीचड़ को फेंकने में कमल भी फिंक जाए।
अगर तुम्हारे जीवन से प्रेम का स्वर चला गया तो तुम संसार को कितना ही घृणा कर लो, तुम परमात्मा को न पा सकोगे। क्योंकि संसार को घृणा करने से वह नहीं मिलता है, उसे ही प्रेम करने से मिलता है। घृणा तो नकारात्मक है। यह तो ऐसे
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