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जागकर जीना अमृत में जीना है
हैं। मरघट ले जाने को उत्सुक हो जाते हैं। चार दिन बाद कहानी भी नहीं रह जाती। कौन याद करता है ? किसको पड़ी है? पानी पर खींची गयी लकीर है यह जीवन। खिंच भी नहीं पाती और मिट जाती है।
एक और भी यश है। वह यश किसी दूसरे से नहीं मिलता। वह आत्मप्रतिष्ठा से मिलता है। वह स्वयं में केंद्रित होने से मिलता है। वह स्वयं के ज्ञान से मिलता है। वह ध्यान का यश है।
_ 'मेधावी पुरुष को उत्थान, अप्रमाद, संयम और दम के द्वारा ऐसा द्वीप बना लेना चाहिए जिसे बाढ़ न डुबा सके।'
बाढ़ यानी मौत। तुमने जो यश बनाया है वह डूब जाएगा सब। वह कागज की नाव है। घर की हौज में चलाते हो एक बात, जीवन के सागर में न चलेगी। कागज की नाव पर धोखे में मत पड़ना। दूसरे के विचार और दूसरे के मंतव्य और दूसरे के द्वारा मिली प्रशंसा कागज की नाव है। ताश का बनाया महल है। जरा सा हवा का झोंका, समाप्त हो जाएगा।
बुद्ध कहते हैं, 'मेधावी पुरुष को उत्थान...।'
उत्थान एक प्रक्रिया है जिसमें तुम जीवन-चेतना को ऊपर की तरफ उठाते हो। साधारणतः आदमी की चेतना नीचे की तरफ बहती है, कामवासना की तरफ बहती है। कामवासना का केंद्र सबसे नीचा केंद्र है आदमी के जीवन में। वहां से चेतना नीचे की तरफ जाती है। उत्थान एक प्रक्रिया है बुद्ध-योग की, जिसमें तुम चेतना को ऊपर की तरफ उठाते हो। जब भी तुम पाते हो चेतना नीचे की तरफ जा रही है, तब तुम उसे ऊपर खींचते हो। तुम उसे सहस्रार की तरफ ले जाते हो। तुम आंख बंद कर लेते हो, और सिर के ऊपरी भाग में तुम सारी जीवन-ऊर्जा को खींचते हो।
इसका तुम प्रयोग करके देखना। शीर्षासन इसीलिए शुरू हुआ कि उससे सहारा मिल जाता है। क्योंकि अगर तुम सिर के बल खड़े हो जाओ तो ऊर्जा आसानी से सिर की तरफ बहनी शुरू हो जाती है। ऊर्जा वैसे ही है जैसे जल नीचे की तरफ बहता है। शीर्षासन का भी यही अर्थ है कि जीवन-ऊर्जा को तुम मस्तिष्क की तरफ लाओ। कामकेंद्र सबसे निम्न है, और सहस्रार सबसे ऊपर। और जो व्यक्ति सहस्रार में जीवन को ले आता है, जो वहां से जीने लगता है, उसकी फिर कोई मृत्यु नहीं।
साधारणतया लोगों का जब प्राण निकलता है तो कामकेंद्र से निकलता है। जननेंद्रिय से निकलता है। सिर्फ योगियों का, समाधिस्थ पुरुषों का प्राण सहस्रार से निकलता है। तुम जहां हो वहीं से तो निकलोगे। तुम्हारा मन जहां-जहां घूमता था, जहां-जहां भटकता था, वहीं से तो मरेगा। और जो कामकेंद्र से मरता है वह फिर जन्म ले लेता है। क्योंकि कामवासना और जन्म की आकांक्षा है। जो सहस्रार से विदा होता है फिर उसका कोई जन्म नहीं। सहस्रार से तुम परमात्मा में लीन होते हो, और कामकेंद्र से तुम प्रकृति में लीन होते हो। कामकेंद्र प्रकृति से जोड़ता है, सहस्रार
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