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एस धम्मो सनंतनो
'वे ध्यान का सतत अभ्यास करने वाले और सदा दृढ़ पराक्रम करने वाले धीर पुरुष अनुत्तर योगक्षेम रूप निर्वाण को प्राप्त होते हैं।' ____ अप्रमाद यानी ध्यान। बुद्ध ने कहा है कि ऐसा अलग बैठकर घडीभर ध्यान कर लेना काफी नहीं है। अच्छा है, न करने से बेहतर है, काफी नहीं है। ध्यान का सातत्य होना चाहिए। जैसे श्वास चलती है-जागो, सोओ, उठो, बैठो—ऐसे ही ध्यान भी चलना चाहिए। ऐसा न हो कि कभी ध्यान कर लिया, फिर भूल गए। क्योंकि अगर घड़ीभर ध्यान किया और फिर तेईस घंटे ध्यान न किया तो घडीभर में तुम जो सफाई करोगे, तेईस घंटे में फिर कचरा लग जाएगा। यह तुम रोज साफ करोगे, रोज गंदा हो जाएगा। ध्यान तो जीवन की शैली बन जानी चाहिए। _ 'वे ध्यान का सतत अभ्यास करने वाले और सदा दृढ़ पराक्रम करने वाले धीर पुरुष अनुत्तर योगक्षेम रूप निर्वाण को प्राप्त होते हैं।'
वे उस जगह पहुंच जाते हैं, जहां अमृत है। वे उस जगह पहुंच जाते हैं, जहां अहंकार का दीया बझ जाता है और जहां जीवन का दीया जलता है। वे उस जगह पहुंच जाते हैं, जहां शरीर आवश्यक नहीं रह जाता, आत्मा पर्याप्त होती है। वे उस जगह पहुंच जाते हैं, जहां सब सीमाएं गिर जाती हैं और असीम उपलब्ध हो जाता है। जैसे बूंद सागर में खो जाए, ऐसे वे सागर में खो जाते हैं। लेकिन यह खोना नहीं है, यह पाना है। क्योंकि वे सागर हो जाते हैं। बूंद कुछ खोती नहीं, सब कुछ पा
लेती है। ___'जो उत्थानशील, स्मृतिवान, शुचि कर्म वाला तथा विचार कर काम करने वाला है, उस संयत, धर्मानुसार जीविका वाला एवं अप्रमादी पुरुष का यश बढ़ता है।'
बुद्ध कहते हैं, यश ही चाहो तो ध्यान का यश चाहना, धन का नहीं। यश ही चाहो तो ज्ञान का यश चाहना, पदार्थ का नहीं। यश ही चाहो तो अंतर्योति का यश चाहना। बाहर कितनी ही रोशनी कर लो और भीतर अंधेरा रहे; और लोग तुम्हारी कितनी ही प्रशंसा करें तुम खुद अपने भीतर आनंद से न भर पाए, यशस्वी न हुए, उस यश का क्या मूल्य है? किसको धोखा देते हो? यह तो अपने ही हाथ अपनी फांसी हो जाएगी। यह तो आत्मघात है। यश एक ही है, बुद्ध कहते हैं, वह ध्यान का है। फिर कोई पहचाने, न पहचाने, उससे दूसरे का कोई लेना-देना नहीं है। ___ दो तरह के यश हैं। एक तो जो दूसरे तुम्हें देते हैं। और एक, जिससे दूसरे का कोई प्रयोजन नहीं, तुम अपनी अंतरात्मा में जिसे जन्माते हो। एक तो धन का यश है, पद का यश है, राजनीति है, संसार का फैलाव है, वहां का यश है। उस यश को बहुत मूल्य मत देना, क्योंकि मौत उस सब को छीन लेगी। कोई याद रखता है किसी को? इधर मरे नहीं कि उधर लोग अर्थी तैयार करने लगते हैं। घर के लोग रोने-धोने में लगे ही होते हैं, तो पास-पड़ोसी आ जाते हैं। वे अर्थी तैयार करने लगते हैं। जल्दी पड़ती है, विदा करो। भुलाओ जल्दी। मरे नहीं कि लोग भुलाने को तत्पर हो जाते
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