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जागकर जीना अमृत में जीना है
हजार बार भी वादा वफा न हो लेकिन मैं उनकी राह में आंखें बिछाके देख तो लूं
ऐसे ही आंखें बिछा - बिछाकर तुम अपने को गंवा देते हो । आखिर में पाते हो कभी कोई वादा वफा नहीं होता। वासना आश्वासन बहुत देती है, पूरा कोई आश्वासन कभी नहीं होता। आश्वासन देने में वासना बड़ी कुशल है ।
मैंने एक बड़ी पुरानी कहानी सुनी है, कि एक आदमी ने बड़ी भक्ति की परमात्मा की। परमात्मा प्रसन्न हुआ, और उस आदमी से पूछा, क्या चाहता है ? उसने कहा, आप मुझे कोई ऐसी चीज दे दें कि उससे मैं जो भी मांगूं, वह मेरी मांग पूरी हो जाए। तो परमात्मा ने उसे एक शंख दिया, और कहा कि इस शंख को तू जब भी बजाएगा और इससे जो भी तू कहेगा वह पूरा हो जाएगा। तू कहेगा लाख रुपए चाहिए, शंख बजकर पूरा भी न हो पाएगा, ध्वनि विलीन भी न हो पाएगी, लाख रुपए मौजूद हो जाएंगे। वह आदमी तो बड़ा प्रसन्न हुआ। अब तो कोई बात ही न रही। जो भी मांगता, मिल जाता ।
उस घर में एक महात्मा एक बार मेहमान हुए । महात्मा ने यह शंख देखा । महात्मा ने कहा, यह कुछ भी नहीं है, मेरे पास महाशंख है । उस साधारण गृहस्थ आदमी ने कहा, महाशंख ! महाशंख की क्या खूबी है ? तो महात्मा ने कहा, महाशंख की खूबी यह है कि मांगो लाख, देता है दो लाख । यह तुम्हारा तो एक ही लाख देता है न? मेरा महाशंख है, उसको मांगो दो लाख, वह कह दे चार लाख । गृहस्थ को लोभ बढ़ा। उसने कहा, अब आप तो महात्माजन हैं, आप तो सब छोड़ ही चुके, शंख आप ले लो, महाशंख मुझे दे दो । महात्मा ने कहा, खुशी से, हम तो त्यागी हैं, रख लो। महाशंख महात्मा छोड़ गए, शंख ले गए। और उसी रात वह विदा भी हो गए। सुबह — रातभर सो न सका गृहस्थ - सुबह होते ही स्नान-ध्यान करके पूजा की। महाशंख फूंका। कहा कि लाख रुपए इसी वक्त चाहिए । महाशंख ने कहा, लाख! अरे, दो लाख लो। लेकिन कुछ आया-करा नहीं। उसने कहा कि भाई क्या हुआ दो लाख का ? महाशंख ने कहा, दो लाख ! अरे, चार लाख लो। मगर कुछ आया-गया नहीं। उसने पूछा, कुछ दोगे भी ? उसने कहा, तुम जो भी मांगोगे उससे दुगुना दूंगा, मगर दूंगा कभी नहीं । तुम दस लाख मांगो, मैं बीस लाख दूंगा। यही महाशंख है। इसलिए महाशंख जब किसी को तुम कहते हो उसका मतलब यही होता है - किसी काम के नहीं । महाशंख ! वायदे बहुत, आश्वासन बहुत !
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यह जिंदगी एक महाशंख है । तुम इससे कुछ भी मांगो, जिंदगी आशा बंधाती है - अरे ! इतने में क्या होगा? हम दुगुना देने को तैयार हैं। और तुम आशा किए चले जाते हो। जिसने आशा न छोड़ी वह धार्मिक नहीं हो पाता । जिसने आशा की यह व्यर्थता न देखी, जिसने आशा का यह महाशंखपन न पहचाना, वह धार्मिक नहीं हो पाता ।
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