SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो यह तो हत्या करना होगा श्वास की नली निकालना। यह तो उसे मारना होगा। वह अपने आप मरे तब ठीक। अब कैसी दुविधा है! इसको जीवन कहोगे? यह जीवन तो नहीं हुआ। यह तो मरे हुए होना हुआ। मरने से भी बदतर हुआ। मरने में भी एक जीवंतता होती है। उतनी जीवंतता भी नहीं है। लेकिन जिसे तुम जीवन कह रहे हो, वह भी बस ऐसा ही है कमोबेश। जिंदगी है या कोई तुफान है ___ हम तो इस जीने के हाथों मर चले इसे जिंदगी क्या कहो जिसके हाथों मौत ही आती है, और कुछ भी नहीं आता। फल से वृक्ष पहचाने जाते हैं। और अगर तुम्हारे जीवन में मृत्यु का ही फल लगता है अंत में, तो वृक्ष पहचान लिया गया, यह कोई जीवन न था। जीसस ने कहा है, जिस जीवन में महाजीवन के फल लगें वही जीवन है। इस जीवन में तो मृत्यु के फल लगते हैं। 'पंडितजन अप्रमाद के विषय में यह अच्छी तरह जानकर आर्यों के, बुद्धों के उचित आचरण में निरत रहकर अप्रमाद में प्रमुदित होते हैं।' । बुद्ध के समय तक पंडित शब्द खराब नहीं हुआ था। पंडित का अर्थ होता है शाब्दिक-प्रज्ञावान। जो प्रज्ञा को उपलब्ध हो गया है। बुद्ध के समय तक पंडित शब्द समादृत था। आज नहीं है। आज पंडित शब्द एक गंदा शब्द है। उसमें रोग लग गया। अब पंडित हम उसको कहते हैं जिसको शास्त्र का ज्ञान है। बुद्ध के समय में पंडित उसे कहते थे जिसे स्वयं का ज्ञान है। 'पंडितजन अप्रमाद के विषय में यह अच्छी तरह जानकर आर्यों के, बुद्धों के उचित आचरण में निरत रहकर अप्रमाद में प्रमुदित होते हैं।' ___वे होश में जागकर आनंदित होते हैं। और कोई आनंद है भी नहीं। तंद्रा है दुख, निद्रा है नर्क, लेकिन हमारी आंखें नहीं खुलतीं। हजार बार भी वादा वफा न हो लेकिन मैं उनकी राह में आंखें बिछाके देख तो लूं हजार बार भी वादा वफा न हो लेकिन आशाएं कभी पूरी नहीं होतीं। कोई वादा वफा नहीं होता। भरोसे दिए जाते हैं और टूट जाते हैं। लेकिन फिर भी आदमी का बेहोश मन है। मैं उनकी राह में आंखें बिछाके देख तो लूं लेकिन एक बार और सही, फिर एक बार और सही। अब तक नहीं हुआ है, कौन जाने कल हो जाए, एक बार और सही। आशा मरती नहीं। आशा हारती है, पराजित होती है, हताश होती है, मरती नहीं। आशा यही कहे चली जाती है, अब तक नहीं हुआ है, ठीक, लेकिन कौन जाने कल हो जाए। 170
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy