________________
जागकर जीना अमृत में जीना है देखते जाना। उसके साथ ही साथ जाना । छाया की तरह उसका पीछा करना। फिर श्वास एक क्षण को रुकी, तुम भी रुक जाना। फिर श्वास वापस लौटने लगी, तुम भी लौट आना । श्वास बाहर चली गयी। फिर श्वास भीतर आए। इस श्वास की परिक्रमा का तुम पीछा करना होशपूर्वक ।
तो बुद्ध ने कहा, यह सबसे सुगम सहारा है। पढ़ा-लिखा हो, गैर पढ़ा- 1 -लिखा हो, पंडित हो, गैर पंडित हो, सभी साध लेंगे। श्वास तो सभी को मिली है। यह प्रकृतिदत्त माला है, जो सभी को जन्म के साथ मिली है।
और श्वास की एक और खूबी है कि श्वास तुम्हारी आत्मा और शरीर का सेतु है। उससे ही शरीर और आत्मा जुड़े हैं। अगर तुम श्वास के प्रति जाग जाओ, तो तुम पाओगे शरीर बहुत पीछे छूट गया, बहुत दूर रह गया । श्वास में जागकर तुम देखोगे, तुम अलग हो, शरीर अलग है। श्वास ने ही जोड़ा है, श्वास ही तोड़ेगी।
तो मृत्यु के वक्त जब श्वास छूटेगी, अगर तुमने कभी श्वास के प्रति जागकर न देखा हो, तो तुम समझोगे गए, मरे। वह केवल भ्रांति है, आत्मसम्मोहन है। वह लंबा सुझाव है, जो तुमने सदा अपने को दिया था और मान लिया है। वह एक भ्रांति है। लेकिन अगर तुम जागे रहे, और तुमने श्वास का जाना भी देखा, तुमने देखा कि श्वास बाहर चली गयी और भीतर नहीं आयी और तुम देखते रहेचली गयी, लौटी नहीं, और तुम देखते रहे- तब तुम कैसे मरोगे ? वह जो देखता रहा श्वास का जाना भी, वह तो अभी भी है। वह तो सदा ही है।
-
- श्वास बाहर
अप्रमादी नहीं मरते, और प्रमादी तो मरे हुए ही हैं । उनको जिंदा कहना ठीक नहीं। प्रमादी को क्या जिंदा कहना ! सोए हुए आदमी को क्या जिंदा कहना !
अमरीका में एक लड़की की जान अटकी है। वह बेहोश पड़ी है। कई महीने हो गए हैं, और चिकित्सक कहते हैं, वह होश में कभी आएगी नहीं। बीमारी असाध्य है। लेकिन तीन-चार साल तक, और ज्यादा भी, ऑक्सीजन के सहारे और यंत्रों के सहारे वह जिंदा रह सकती है। वह जिंदा है। मगर उसको क्या जिंदा कहो ! बिस्तर पर पड़ी है बेहोश, कई महीने हो गए, यंत्र टंगे हैं चारों तरफ, फेफड़ा यंत्र से चल रहा है, श्वास यंत्र से ली जा रही है, शरीर में खून डाला जाता है।
1
मां-बाप पीड़ित हैं। क्योंकि मां-बाप कहते हैं, यह कोई जिंदगी है? और ऐसी ही वह वर्षों तक अटकी रहेगी। इससे तो बेहतर है मर जाए। कभी-कभी मौत बेहतर होती है जिंदगी से। तो मां-बाप ने आज्ञा चाही है अदालत से, क्योंकि अदालत झंझट खड़ा करती है बीच में । बाप चाहते हैं कि जो ऑक्सीजन की नली है वह अलग कर ली जाए, ताकि लड़की मर जाए। कोई मां-बाप पर खर्चा भी नहीं पड़ रहा है, सरकार खर्च उठा रही है, लेकिन मां-बाप को देखकर पीड़ा होती है कि यह क्या सार है इसमें ? और पता नहीं इसको भीतर कितनी पीड़ा हो रही है ! इससे तो शरीर से छुटकारा हो जाए। लेकिन अदालत ने आज्ञा नहीं दी। क्योंकि अदालत कहती है,
169