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एस धम्मो सनंतनो
कुछ ठोस प्रमाण खोजने पड़ेंगे। तभी यह मानेगा, जिद्दी है।
तो वह उसे ले गया पोस्टमार्टम घर में अस्पताल में-जहां मुर्दो की लाशें इकट्ठी पड़ी थीं। उसने कहा कि नसरुद्दीन, अगर तुम मर गए तो यह तुम काम करके देखो, यह छुरी लो, मुर्दो की लाश काटकर देखो। काटकर देखा। उसने पूछा कि
खून निकलता है? नसरुद्दीन ने कहा, नहीं, खून नहीं निकलता। ऐसी कई लाशें दिखलायीं। रोज सात दिन तक ले गया। फिर उसने कहा, अब एक बात पक्की हो गयी है कि मरे हुए आदमी के शरीर से खून नहीं निकलता। उसने कहां, बिलकुल पक्की हो गयी। ____घर लाया, तेज धार वाला चाकू लिया, उसकी अंगुली–नसरुद्दीन की अंगुली उसने काटी, खून का फव्वारा निकला। उसने कहा, अब देखो, अब तुम मानते हो कि जिंदा हो? नमरुद्दीन ने कहा, इससे सिर्फ यही सिद्ध होता है कि अपनी वह धारणा गलत थी, मरे हुए आदमियों से भी खून निकलता है। वे मुर्दे धोखा दे गए। या मुर्दे कुछ गलत थे। या तुमने कोई चालबाजी की। लेकिन इससे सिर्फ यही सिद्ध होता है कि मुर्दो से भी खून निकलता है।
आदमी की जब एक मान्यता हो, तो वह अपनी मान्यता को सब तरफ से सहारे देता है। तुम जो मान लेते हो उसको तुम सहारा देते हो। यह तुम्हारी मान्यता है कि तुम मरणधर्मा हो। इस मान्यता को सहारा भी मिल जाता है, क्योंकि शरीर मरणधर्मा है। तुम मरणधर्मा नहीं हो, तुम अमृतपुत्र हो। अमृतस्य पुत्रः। लेकिन शरीर मरणधर्मा है, वह बहुत करीब है। और शरीर को तुमने करीब-करीब अपना होना मान लिया है। तुम यह भूल ही गए हो कि तुम शरीर से पृथक हो, शरीर से पार हो। शरीर नहीं था तब भी थे, शरीर नहीं होगा तब भी रहोगे। लेकिन शरीर से तुम ऐसे चिपट गए हो, और शरीर से ऐसा तादात्म्य हो गया है कि शरीर मरता है तो तुम मानते हो कि शरीर नहीं, तुम ही मरे।
इस तादात्म्य को तोड़ना पड़ेगा, यह मूर्छा है, यह प्रमाद है। अपने को शरीर मान लेना प्रमाद है। और जिसने अपने को शरीर माना, वह मरेगा, क्योंकि शरीर मरने वाला है। फिर यह भ्रांति बनी रहेगी कि शरीर मर गया तो मैं मरा। ___ जब तुम छोटे थे, बच्चे थे, तब तुम मानते थे मैं बच्चा हूं। शरीर बच्चा था। तुम तो बच्चे कभी भी नहीं थे, तुम तो सनातन पुरुष हो। छोटे बच्चे में भी सनातन चैतन्य है। वह उतना ही प्राचीन है जितने बुद्ध और कृष्ण। वह तभी से है। अगर कभी संसार शुरू हुआ हो तो तभी से है। और अगर कभी संसार शुरू न हुआ हो, तो वह तभी से है। फिर तुम जवान हो गए। तुम मानते हो तुम जवान हो। शरीर के साथ तुम अपने को मानते चले जाते हो। फिर तुम बूढ़े हो गए, हाथ-पैर कंपने लगे, लकड़ी टेककर चलने लगे, तुम मानते हो मैं बूढ़ा हो गया। शरीर ही हो रहा है।
यह तो ऐसे ही है जैसे नया कपड़ा पहना, और तुमने समझा कि मैं नया। और
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