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________________ एस धम्मो सनंतनो से रास्ता न मिल सकता था। ___ परमात्मा मिल जाता है क्योंकि खोया नहीं है, केवल विस्मृत हुआ है। जैसे खीसे में ही रखे थे हीरे-जवाहरात और भूल गए। जब भी खीसे में हाथ डालोगे, पाओगे वहीं है। अप्रमाद का अर्थ है, खीसे में हाथ डालना। चेतना में भीतर हाथ डालना। भीतर जगाने की चेष्टा अपने आपको। 'अप्रमाद अमृत का पथ है और प्रमाद मृत्यु का।' नींद में और मृत्यु में बड़ा सामंजस्य है। समानता है। एकस्वरता है। नींद छोटी मृत्यु है। रोज रात तुम मर जाते हो। सुबह फिर उठते हो। दिनभर में जीवन थक जाता है, रात मर जाते हो। रात तुम वही नहीं रहते जो तुम दिनभर थे। बिलकुल भूल ही जाता है कि दिन में तुम क्या थे, कौन थे। रात जब तुम सोते हो, कभी तुमने यह खयाल किया, विचार किया, दिन में जो तुम्हारी पत्नी थी रात पत्नी नहीं रह जाती। याद ही नहीं रहती। दिन में जो तुम्हारा बेटा था रात बेटा नहीं रह जाता। दिन में जो तुम्हारा घर था रात तुम्हारा घर नहीं रह जाता। दिन में हो सकता है तुम भिखारी हो, रात सपने में सम्राट हो जाते हो। दिन हो सकता है सम्राट थे, रात भिखारी हो जाते हो। और दिन की जरा भी याद नहीं आती नींद में। तो यह कहना ठीक नहीं है कि तुम नींद में वही होते हो जो तुम जागने में थे। मर ही जाते हो, जागरण का रूप तो खो ही जाता है। वह जो ढांचा था, तुम्हारा व्यक्तित्व था, बिलकुल विसर्जित हो जाता है। दिन में फिर तुम जागते हो। फिर तुम दूसरे व्यक्ति हो गए। फिर दुकान-बाजार, धन-दौलत, हिसाब-किताब, फिर वापस लौट आया। रोज आदमी नींद में मरता है। जैसे रोज नींद में मरता है दिनभर की थकान के बाद, ऐसे ही मृत्यु भी जीवनभर की थकान के बाद मरना है। फिर जागता है, फिर नया जन्म हो जाता है। मौत का स्वभाव नींद जैसा है। समाधि का स्वभाव भी नींद जैसा है। पतंजलि ने कहा है कि समाधि और सुषुप्ति एक जैसी है। इसीलिए तो जब संन्यासी मरता है तो उसकी कब्र को हम समाधि कहते हैं। हर किसी की कब्र को समाधि नहीं कहते। समाधि हम तभी कहते हैं जब संन्यासी की कब्र बनाते हैं। क्यों? समाधि मृत्यु जैसी है। समाधि भी नींद जैसी है, सिर्फ एक फर्क है, छोटा-लेकिन बहुत बड़ा-समाधि जागती हुई नींद है। इसलिए कृष्ण ने कहा है, या निशा सर्वभूतानाम तस्याम जागर्ति संयमी। जब सब सोते हैं, जब सबकी नींद है-सर्वभूतानाम-सारे भूत सो जाते हैं। पौधे भी सो जाते हैं, पत्थर भी सो जाते हैं, सारा संसार सो जाता है। तस्याम जागर्ति संयमी। तब भी संयमी जागा रहता है। बाहर के ही भूत सो जाते हैं ऐसा नहीं, भीतर के भी तत्व सो जाते हैं-शरीर सो जाता है, शरीर के भीतर के सारे पांचों तत्व सो जाते हैं-तस्याम जागर्ति संयमी, फिर भी भीतर चेतना जागती रहती है। सब तरफ नींद 162
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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