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जागकर जीना अमृत में जीना है
खाली रह जाते हैं। और जिसे तुम खोजते थे वह भीतर मौजूद था, जरा रोशनी लाने की बात थी। दीया जलाने की बात थी। उस दीए का नाम है अप्रमाद, होश।
चलते, उठते, बैठते, कुछ भी करो-बुद्ध ने कहा-एक काम करना मत भूलोः होशपूर्वक करो। बुद्ध अपने भिक्षुओं को कहते थे कि चलो भी रास्ते पर, तो रास्ते को ही मत देखो, अपने को भी देखते हुए चलो कि में चल रहा हूं। भाषा में कहने की भीतर जरूरत नहीं है कि मैं चल रहा है। लेकिन यह प्रतीति बनी रहे कि मैं देख रहा हूं। और तुम बड़े हैरान होगे, एक अनूठा अनुभव होगा।
__ एक सुंदर स्त्री रास्ते से गुजरती है। अगर तुम्हें यह भी होश रहे कि मैं देख रहा हूं; सुंदर स्त्री वहां है, मैं यहां हूं, और मैं देख रहा हूं-तुम अचानक हैरान होओगे—यह बोध कि तुम देख रहे हो और कामना पैदा नहीं होती! भूल जाओ कि मैं देख रहा हूं। बस सुंदर स्त्री दिखायी पड़ती है और वासना जग जाती है, कामना पैदा हो जाती है। किसी का महल दिखायी पड़ता है, मन में सपने बनने लगते हैं—ऐसा महल मेरा भी हो। लेकिन जरा सा जागो, महल भी दिखायी पड़े कोई हर्जा नहीं है, लेकिन देखने वाला भी दिखायी पड़े। वह देखने वाले को देख लेने की कला का नाम है अप्रमाद। __ कृष्णमूर्ति जिसे 'अवेयरनेस' कहते हैं, वह बुद्ध का शब्द है 'अप्रमाद'। महावीर ने उसी को 'विवेक' कहा है। गुरजिएफ ने एक शब्द प्रयोग किया है। वह बहुत ठीक-ठीक शब्द है-'सेल्फ रिमेंबरिंग'। स्वयं का बोध। कुछ भी करो स्वबोध न खोए, स्वबोध की कड़ी भीतर लगी ही रहे। स्वबोध का सातत्य बना ही रहे।
शुरू-शुरू में बार-बार तुम पकड़ोगे और खो-खो जाएगा। क्षणभर को लगेगा कि अपना बोध है, फिर खो जाएगा। पुरानी आदत है खोने की। लेकिन अगर सातत्य बना रहा, तो जैसे बंद-बंद गिरकर बड़े चट्टान को भी तोड़ देती है, वैसे ही बूंद-बूंद अप्रमाद की, होश की, धीरे-धीरे तुम्हारे जन्मों-जन्मों के अंधकार की पर्त को तोड़ देगी। और पहले दिन भी जब किरण तुम्हारे भीतर उतरेगी तब तुम पाओगे, अरे! हम जिसे खोजते थे वह सदा घर में था। हम बाहर व्यर्थ ही खोजने गए थे। हमने उसे खोया ही न था। बाहर देखा, उसी में भूल गए थे।
कई बार तुम्हें खयाल होगा, जो लोग चश्मा लगाते हैं यहां तो काफी लोग चश्मा लगाए हुए हैं-कई बार तुम्हें खयाल होगा, चश्मा आंख पर होता है और तुम चश्मा खोजते हो। और तुम यह भूल ही जाते हो कि चश्मे ही से चश्मे को खोज रहे हो। चश्मा लगाए हुए हो और चश्मे को खोज रहे हो। लोग कान में पेंसिल और कलम खोंस लेते हैं और इधर-उधर खोजते हैं। भूल जाते हैं। ____ परमात्मा खोया नहीं, सिर्फ भूल गया है, विस्मरण है। सिर्फ विस्मरण है। इससे हिम्मत रखो। क्योंकि स्मरण आना कठिन नहीं है। अगर खो ही गया होता तो खोजना मुश्किल था। कहां खोजते? इतना विराट है जगत! कहां खोजते? असीम है! कहीं
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