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________________ जागकर जीना अमृत में जीना है है। और मजा यह है कि जिसने निकट को जाना, उसने दूर को भी जान लिया, क्योंकि दूर निकट का ही फैलाव है। उपनिषद कहते हैं, वह परमात्मा पास से भी पास, दूर से भी दूर है। क्या इसका यह अर्थ हुआ कि उसे जानने के दो ढंग हो सकते हैं कि तुम उसे दूर की तरह जानने जाओ या पास की तरह जानने जाओ? ___ नहीं, दो ढंग नहीं हो सकते। जब तुम पास से ही नहीं जान पाते तो तुम दूर से कैसे जान पाओगे? जब मैं अपने को ही नहीं छू पाता, परमात्मा को कैसे छू पाऊंगा? जब आंख अपने ही सत्य के प्रति नहीं खुलती, तो परमात्मा के विराट सत्य की तरफ कैसे खुल पाएगी? इसलिए बुद्ध चुप रह गए, परमात्मा की बात ही नहीं की। वह बात करनी फिजूल है। सोए आदमी से, जागकर जो दिखायी पड़ता है, उसकी बात करनी फिजूल है। सोए आदमी से तो यही बात करनी उचित है, कैसे उसका सपना टूटे, कैसे उसकी नींद टूटे? ... 'अप्रमाद अमृत का पथ है और प्रमाद मृत्यु का।' जो भी सोए-सोए जी रहा है वह मौत में जा रहा है। वह रास्ता मौत का है। जो जागकर जी रहा है वह अमृत में चलने लगा। वह रास्ता अमृत का है। क्योंकि तुम्हारे भीतर जागते ही तुम्हें उसका पता चलता है जो मिट ही नहीं सकता। तुम एक ऐसे घर के वासी हो जिसमें अमृत भी छिपा है, अमृत के झरने छिपे हैं, लेकिन रोशनी नहीं है। रोशनी लानी है। घर अंधेरा है। झरने अमृत के छिपे हैं, खजाने शाश्वत के छिपे हैं, लेकिन घर अंधेरा है। और तुम अंधेरे घर के वासी हो। और तुम अगर कभी आंख भी खोलते हो तो खिड़की पर खड़े होकर बाहर देखते हो। ___ शायद, जैसा कि राबिया की प्रसिद्ध घटना है, एक सांझ फकीर राबिया को-एक अनूठी स्त्री हुई राबिया, सूफी फकीर थी-लोगों ने घर के सामने कुछ खोजते देखा। सांझ थी और सूरज ढलता था। लोगों ने पूछा-बूढ़ी औरत को सहायता देने के लिए कि क्या खो गया है? उसने कहा, मेरी सुई खो गयी है। तो वे भी खोजने लगे। फिर एक आदमी को खयाल आया कि सुई बड़ी छोटी चीज है, सूरज अब ढलता, तब ढलता, जल्दी ही अंधेरा हो जाएगा; और छोटी सी चीज है, इतना बड़ा रास्ता है; कहां गिरी यह ठीक से पता न हो, तो खोजना मुश्किल है; फिर रात करीब आती है। तो उसने पूछा कि राबिया, ठीक से बता कि सुई गिरी कहां? स्थान का पता चल जाए तो खोज भी हो जाए। __राबिया ने कहा, वह तो तुम न पूछो तो अच्छा है। क्योंकि सुई तो मेरे घर में भीतर गिरी है। वे सब रुक गए जो खोज रहे थे। उन्होंने कहा, पागल औरत! हमें सदा से शक रहा है कि तेरा दिमाग खराब है। 159
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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