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जागकर जीना अमृत में जीना है
बेहोशी महान होनी चाहिए। और रोज तुम देखते हो कोई बूंद गिरी, रोज तुम देखते हो कोई तारा डूबा, रोज तुम देखते हो कोई बबूला फूटा और खो गया हवा में। तुम दो आंसू भी बहा लेते हो किसी की मृत्यु पर, सहानुभूति भी प्रगट कर आते हो; लेकिन तुम्हें यह बोध नहीं आता कि यह मृत्यु तुम्हारी मृत्यु की भी खबर है। तुम मरघट भी हो आते हो और फिर वैसे के वैसे संसार में वापस लौट आते हो। नींद बड़ी गहरी होगी। मरघट भी नहीं तोड़ पाता। निकटतम प्रियजन मर जाता है तो भी तुम जो मर गया उसके लिए रो लेते हो, लेकिन तुम्हें यह होश नहीं आता कि तुम्हारी मौत भी करीब आयी चली जाती है। आज कोई मरा है, कल तुम भी मरोगे। लोग इस विचार से बचते हैं, लोग इस विचार से डरते हैं। ___ और पश्चिम के मनोवैज्ञानिक तो कहते हैं कि जो व्यक्ति सोचता है मृत्यु के संबंध में, वह रुग्ण है। वह रुग्ण इसलिए है कि अगर ऐसा वह सोचेगा तो जी न सकेगा। उनकी बात भी ठीक है। अगर यही जीवन जीवन है, तो मृत्यु के संबंध में बहुत सोचना खतरनाक है। क्योंकि जैसे ही तुम मृत्यु के संबंध में बहुत सोचोगे, तुम्हारे पैर रुक जाएंगे। जाती यात्रा पर तुम सहम जाओगे। महत्वाकांक्षा के लिए उड़ने की तैयारी कर रहे थे, पंख गिर जाएंगे।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं, मृत्यु के संबंध में बहुत सोचना रुग्णता है। अगर यही जीवन जीवन है, तो वे ठीक कहते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं कि यह जीवन तो जीवन नहीं है। जीवन तो इस तंद्रा के पार है। इस बेहोशी के बाहर है। लेकिन हम इस बेहोशी को खूब सम्हालकर चलते हैं। हम कहीं से भी इसे टूटने नहीं देते। बहुत । मौके भी आ जाते हैं टूटने के, तो भी हम सम्हाल-सम्हाल लेते हैं। फिर करवट ले लेते हैं, फिर सो जाते हैं।
एक सपना टूटा नहीं कि उसके पहले ही हम दूसरे सपने के बीज बो देते हैं। एक आशा मिटी नहीं कि हम दूसरी आशा के सहारे टंग जाते हैं। लेकिन आशा को हम बनाए ही रखते हैं। एक क्षण का भी हम मौका नहीं देते कि जीवन की वास्तविकता का हम एहसास कर सकें, अनुभव कर सकें। छाती में चुभ जाए जीवन का यह सत्य, कि मौत छिपी है, मौत आ रही है, प्रतिपल चली आ रही है। जिस दिन से पैदा हुए हैं उस दिन से ही मौत पास आनी शुरू हो गयी है। जन्म का दिन मृत्यु का दिन भी है, यह खयाल आ जाए। तुम जन्मदिन मनाते हो, लेकिन हर जन्मदिन जीवन को पास नहीं लाता, मृत्यु को पास लाता है। और एक वर्ष कम हो गया जीवन का। मौत और भी पास आ गयी। क्यू में तुम थोड़े आगे सरक गए मरघट की तरफ।
बुद्ध का पूरा मनोविज्ञान, समस्त बुद्धों का-फिर वे महावीर हों, कृष्ण हों, क्राइस्ट हों, या मोहम्मद हों-समस्त बुद्धों का मनोविज्ञान मृत्यु के बोध पर निर्भर है। जिस दिन भी तुम्हें दिखायी पड़ जाएगा कि यह जीवन गया गया है, इसे पकड़ोगे
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