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एस धम्मो सनंतनो
ज फ र ने गाया है
उम्र-दराज मांगकर लाए थे चार दिन दो आरजू में कट गए दो इंतजार में
ऐसी ही कहानी है आदमी की । जिंदगी में कुछ हाथ आता नहीं । आशाएं बहुत हैं, सपने बहुत हैं। लेकिन हाथ में सिर्फ राख ही लगती है। आशाओं की, सपनों की धूल ही लगती है । और जाते समय जफर के शब्द अधिकांशतः सभी के लिए सही सिद्ध होते हैं । चार दिन मिले थे जिंदगी के, दो आकांक्षाओं में बीत गए, दो उनकी पूर्ति की प्रतीक्षा में। न तो कभी कुछ पूरा होता है, न कहीं पहुंचते हैं। जीवन ऐसे ही बीत जाता है— व्यर्थता में, असार में।
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जिसे जीवन की यह व्यर्थता दिखायी पड़ी, वही संन्यस्त हुआ। जिसे संसार की यह दौड़ सिर्फ दौड़ मालूम पड़ी - अर्थहीन, कहीं ले जाने वाली नहीं - जिसे जीवन सिवाय मृत्यु के मुंह में जाने के और कुछ न दिखायी पड़ा, वही जागा, उसी ने होश को सम्हाला, उसी ने नींद से बाहर निकलने की चेष्टा की। अगर तुम्हें अभी भरोसा है कि तुम्हारे सपने पूरे हो जाएंगे, तो तुम जागना न चाहोगे। जिसके मन में भी सपनों का जाल है, वह जागना न चाहेगा। क्योंकि जागने पर तो सपने टूट ही जाते हैं। सपनों के लिए नींद चाहिए ।
अप्रमाद चाहिए जीवन के लिए, प्रमाद चाहिए नींद के लिए। अप्रमाद का अर्थ है होश। वह बुद्ध और महावीर का शब्द है । और प्रमाद का अर्थ है सुस्ती, तंद्रा, नींद। अगर तुम्हारे मन में कोई भी वासना है, तो प्रमाद चाहिए ही। तब तुम अप्रमत्त होने की चेष्टा न कर सकोगे, क्योंकि वह तो विपरीत होगा । कोई मधुर सपना देखता हो और तुम उसे जगाने जाओ, पीड़ा मालूम होती है। तुम दुश्मन जैसे मालूम पड़ोगे। इसीलिए बुद्धपुरुष सांसारिक व्यक्तियों को शत्रु जैसे मालूम पड़ते हैं । मधुर नींद ले रहे थे, अपने सपनों में खोए थे - सपने स्वर्णिम भी हो सकते हैं, सोने के महलों के हो सकते हैं, लेकिन सपना सपना है। मिट्टी का घर हो कि सोने का महल हो, जागकर दोनों ही समाप्त हो जाते हैं । जागते ही दोनों टूट जाते हैं।
बुद्धपुरुषों की सारी चेष्टा यही है कि तुम कैसे सपने के बाहर जाग जाओ। तो ही तुम जीवन के वास्तविक रूप को जान सकोगे, तो ही तुम उस जीवन को जान सकोगे जिसकी कोई मृत्यु नहीं है। अभी तो जिसे तुमने जीवन समझा है, वह मान्यता है। वह जीवन नहीं है। इसे कौन जीवन कहेगा जो आज है और कल नहीं हो जाएगा ? पानी का बबूला है, बुद्ध ने कहा; भोर का तारा है, बुद्ध ने कहा; अभी है, अभी गया। घास के पत्ते पर टिकी शबनम की बूंद है, बुद्ध ने कहा । कब गिर जाएगी, कोई भी नहीं जानता ।
ऐसे जीवन पर भरोसा कर लेता है आदमी ! नींद बड़ी गहरी होनी चाहिए,
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