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एस धम्मो सनंतनो
असली सवाल आदत से मुक्त होने का है।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि माला मत फेरो। मैं यह भी नहीं कह रहा हूं कि सिगरेट पीओ। मैं यह कह रहा हूं कि तुम मालिक रहो। कोई आदत ऐसी न हो जाए कि मालिक बन जाए। कोई आदत। मंदिर जाने की आदत भी मालिक न हो जाए। ध्यान करने की आदत भी मालिक न हो जाए। मालिक तुम ही रहो।
मालकियत बचाकर आदत का उपयोग कर लेना, यही साधना है। मालकियत खो दी, और आदत सवार हो गयी, तो तुम यंत्रवत हो गए। तब तुम्हारा जीवन मूछित है। ऐसे लोग हैं, जो मेरे पास आकर कहते हैं कि अगर पूजा न करें रोज, तो बेचैनी लगती है। वे सोचते हैं कि बड़ा धार्मिक, बड़ी धार्मिक घटना घट गयी उनके जीवन में। मैं उनसे पूछता हूं, पूजा करने से कुछ आनंद मिलता है? वे कहते हैं, आनंद तो कुछ नहीं मिलता, लेकिन न करें तो बेचैनी लगती है।
यही तो सिगरेट पीने वाला कहता है। वह कहता है कि उससे पूछो, कुछ आनंद मिलता है—वह कहता है, आनंद! क्या रखा है! आनंद तो कुछ नहीं मिलता, कभी-कभी खांसी जरूर आती है; आनंद तो कुछ भी नहीं मिलता, लेकिन न पीओ तो बेचैनी मालूम होती है। ___ इसे तुम थोड़ा सोचो। इसी को मैं यंत्र हो जाना कहता हूं, कि जिससे कुछ भी नहीं मिलता है उससे भी न करने पर बेचैनी मालूम होती है। उपलब्ध कुछ भी नहीं होता है, पाने को कुछ भी नहीं है, लेकिन छोड़ने में मुसीबत है। क्योंकि आदत ने पकड़ा है अब। आदत इतना ही कर सकती है—करो, तो कुछ न मिले; न करो, तो कुछ खोता मालूम पड़े। ___अब यह बड़े मजे की बात है, जिस चीज को करने से कुछ नहीं मिलता, उसको न करने से खोएगा कैसे? कुछ खोता नहीं, सिर्फ पुरानी आदत, पुरानी लकीरों पर न चलने से अड़चन मालूम होती है। ____ मैं एक बहुत बड़े वकील को जानता था। उनकी आदत थी कि जब भी वे अदालत में खड़े होते, पैरवी करते-बड़े वकील थे, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के थे, और लंदन और पेकिंग और दिल्ली तीन जगह उनके दफ्तर थे-तो उनकी आदत थी कि वे अपने कोट का बटन घुमाने लगते थे, जब अटक जाते। सभी की होती है। कोई अपना सिर खुजलाने लगता है, कोई कुछ करने लगता है। उस आदत का भी वैसा ही उपयोग है जैसे बटन दबाने का। तो अगर जब भी उनके विचार उलझ जाते, या कोई उत्तर न सूझता, तो वे कोट का बटन घुमाने लगते। घुमाने से कुछ मिलता था यह तो पक्का पता नहीं, क्योंकि कोट का बटन घुमाने से क्या मिलेगा? और जिसकी बुद्धि उलझी हुई हो, समझ में न आ रहा हो, वह कोई कोट के बटन घुमाने से कुछ बात समझ में आ जाएगी? लेकिन विरोधियों को यह बात दिखायी पड़ गयी कि वे जब भी उलझ जाते हैं तो बटन घुमाते हैं।
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