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'आज' के गर्भाशय से 'कल' का जन्म
बटन दबा दे, तो क्रोध करवा दे। कोई भी तुम्हारी बटन दबा दे, तो तुम प्रसन्न हो जाओ। कोई भी झुककर नमस्कार कर ले, तुम्हारी प्रशंसा कर दे, तो तुम गदगद ! कोई जरा गाली दे दे, तो तुम जार-जार! तुम यंत्रवत हो जाओगे । और बटनें लोगों को पता हो जाती हैं। सबको पता हैं एक-दूसरे की बटनें। कहां से दबा दो कि सब ठीक हो जाता है। कहां से दबा दो कि सब गड़बड़ हो जाता है। तुम मशीन हो क्या ? या मनुष्य हो !
मनुष्य होने का इतना ही अर्थ है कि कोई तुम्हारी क्रोध की बटन दबाए चला जाए, लेकिन तुम कहते हो नहीं करना है, तो बटन दबती रहती है, वह आदमी थक जाता है, लेकिन तुम क्रोध नहीं करते। तुम कहते हो मैं अपना मालिक हूं। जब करना चाहूंगा करूंगा, जब न करना चाहूंगा नहीं करूंगा। प्रतिक्रिया और क्रिया में यहीं फर्क है। प्रतिक्रिया में दूसरा मालिक है, तुम नहीं । और क्रिया में तुम मालिक हो, दूसरा नहीं ।
और बड़े मजे की बात है, प्रतिक्रिया बांधती है, क्रिया मुक्त करती है। जो अपने कर्म का मालिक है, उसके कर्म का कोई संस्कार नहीं बनता । और जो अपने कर्म का मालिक नहीं है, जो प्रतिकर्म करता है— रिएक्ट होता है सिर्फ — उस आदमी के जीवन में बंधन बनते चले जाते हैं। रोज-रोज जाल मजबूत होता चला जाता है। आखिर में तुम पाते हो, तुम तो बचे ही नहीं, आदतों का एक ढेर - मुर्दा ढेर - जिसमें से जीवन कभी का उड़ चुका। पक्षी तो जा चुका है जीवन का बहुत पहले, कटघरा छूट गया है, पिंजड़ा छूट गया है।
जागो, इसके पहले कि देर हो जाए। और आदतों से मुक्त होना शुरू करो। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा कि बुरी आदतों से मुक्त हो जाओ और भली आदतें बना लो। तुम्हारे महात्मागण तुमसे यही कह रहे हैं। वे तुमसे कहते हैं, बुरी आदतें छोड़ो, अच्छी बनाओ। मैं तुमसे कहता हूं, आदत छोड़ो। बुरी और अच्छी आदत से कोई फर्क नहीं पड़ता। लोहे का हो पिंजड़ा कि सोने का, क्या फर्क पड़ता है?
एक आदमी को सिगरेट पीने की आदत है, सारी दुनिया बुरा कहती है । दूसरे को माला फेरने की आदत है, सारी दुनिया अच्छा कहती है। जो सिगरेट पीता है वह अगर न पीए तो मुसीबत मालूम होती है, जो माला फेरता है अगर न फेरने दो तो मुसीबत मालूम होती है। दोनों गुलाम हैं। एक को उठते ही से सिगरेट चाहिए, दूसरे को उठते ही से माला चाहिए। माला वाले को माला न मिले तो माला की तलफ लगती है। सिगरेट वाले को सिगरेट न मिले तो सिगरेट की तलफ लगती है। ऐसे बुनियाद में बहुत फासला नहीं है। सिगरेट भी एक तरह का माला फेरना है। धुआं भीतर ले गए, बाहर ले गए, भीतर ले गए, बाहर ले गए—मनके फिरा रहे हैं । बाहर, भीतर । धुएं की माला है। जरा सूक्ष्म है। कोई अपना कंकड़-पत्थर की फेर रहा है। जरा स्थूल है।
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