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________________ एस धम्मो सनंतनो रोना है कुछ हंसी नहीं है __यह कोई मजाक नहीं है कि रो लिए और रोक लिए। यह कोई हंसी नहीं है कि हंस लिए और रोक लिए। हंसी तो तुम्हारी ऊपर-ऊपर होती है, रुक जाती है। रोना बहुत गहरे चला जाता है। रोना तुम्हारे जीवन में सब तरफ भर जाता है, और रोज-रोज अगर तुम रोने को इस तरह सम्हालते गए, और जीने को कल पर टालते गए; तुमने कहा हंसेंगे कल, रोएंगे आज...और तुम जो दलील दे रहे हो वह दलील यह है कि अपना वर्तमान तो सुखद मालूम नहीं पड़ता, इसलिए सुखद सपने देखेंगे। सुखद वर्तमान क्यों नहीं है, यह पूछो। इसीलिए नहीं है कि कल भी तुमने सपने देखे थे आज के। और कल का दिन गंवा दिया जिसमें आज सुखद हो सकता था, जिसमें आज की आधारशिला रखी जा सकती थी। कल तुमने गंवा दिया, इसीलिए आज दुखद है। और तुम यही दलील दे रहे हो कि हम आज को भी गंवाएंगे, क्योंकि कल का सपना अच्छा मालूम पड़ता है। तुम्हारी मर्जी। गणित साफ है। फिर मुझसे मत कहना कि हमें किसी ने चेताया नहीं। तुम्हें यह मौका न मिलेगा कहने का, यह ध्यान रखना, कि हमें किसी ने चेताया नहीं। दूसरों को तो यह भी सुविधा है कहने की कि उन्हें किसी ने चेताया नहीं। लेकिन मैं तुम्हें रोज चेता रहा हूं। चौथा प्रश्न: पिछले जन्म के संस्कार इस जन्म में आदत बन जाते हैं। इस जन्म की आदतें अगले जन्म में फिर संस्कार बन जाएंगी। फिर अंत कहां है? अंत है इस बात में, इस सत्य को जान लेने में कि तुम संस्कार नहीं हो, तुम आदत नहीं हो। अंत है इस सत्य के प्रति जाग जाने में कि तुम पृथक हो। अंत है होश में। अंत है साक्षी भाव में। निश्चित ही तुमने कल भी क्रोध किया था, परसों भी क्रोध किया था, आदत बन गयी। आज किसी ने जरा सा उकसा दिया, अंगारा तो था ही भीतर-रोज-रोज सम्हाला था—हो गया। राख भी जमी थी तो बस ऊपर जरा सी पर्त थी। किसी ने फूंक मार दी, पर्त झर गयी, अंगारा बाहर आ गया, तुम क्रोध से भर गए। आज तुम क्रोध करोगे, कल के लिए फिर और तैयारी हो गयी। . ऐसे रोज-रोज तुम अभ्यास बनाते जाओगे। संस्कार गहन होता जाएगा। और जितना संस्कार गहन हो जाएगा, उतने ही तुम यंत्रवत हो जाओगे। कोई भी तुम्हारी 146
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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