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'आज' के गर्भाशय से 'कल' का जन्म
रहती है कि कुछ उपाय करेंगे, दुख मिटाएंगे, कल सब ठीक हो जाएगा। जिनके जीवन में दुख नहीं रहा, वे एकदम चौंककर पूछते हैं, अब क्या करें? दुख भी नहीं रहा—जिसको मिटाते वह भी नहीं रहा–मिटाने की दौड़ भी समाप्त हो गयी, कोई कष्ट नहीं है। लेकिन आनंद भी नहीं है। उनका जीवन बड़ी उदासी से, बड़ी ऊब से भर जाता है। जीवन राख-राख हो जाता है। उसमें से सारी आशा और आनंद का अंगार बुझ जाता है। ___ तुम चकित होओगे देखकर कि भिखारी के कदमों में भी तुम्हें गति मालूम होती है-हो सकती है क्योंकि उसको कहीं पहुंचना है, कुछ दुख मिटाना है, कुछ तकलीफ ठीक करनी है; सम्राट के पैर बिलकुल ही बोझिल हो जाते हैं। न कहीं पहुंचने को, न कुछ पाने को; जो पहुंचना था पहुंच चुके, जो पाना था पा लिया, अब? अब एक इतना बड़ा प्रश्न बनकर खड़ा हो जाता है। अब सिर्फ घसिटते हैं। अब सिर्फ मौत की राह देख रहे हैं कि कब आए, कब छुटकारा दिला दे।
दुख का न हो जाना आनंद नहीं है। दुख का न हो जाना आनंद के होने के लिए जरूरी शर्त हो सकती है, आवश्यक हो सकता है, पर्याप्त नहीं है।
तो पश्चिम का मनोविज्ञान भी धीरे-धीरे सरक रहा है। फ्रायड ने जहां मनोविज्ञान को छोड़ा था उससे बहुत आगे जा चुका पश्चिम में भी मनोविज्ञान। नए मानवतावादी विचारक पैदा हुए हैं-अब्राहम, मैसलो और दूसरे जिन्होंने अब मनोविज्ञान को नयी दिशाएं देनी शुरू की हैं। वे दिशाएं ये हैं कि अब इस बात की हमें फिकर नहीं है कि आदमी सिर्फ स्वस्थ हो। स्वस्थ से ज्यादा हो, आनंदित हो। इतना काफी नहीं है कि बीमारी न हो, इतने से क्या होगा? उत्सव हो। तुम चल सको, तुम्हारे पैर स्वस्थ हों, इतना काफी नहीं है। तुम नाच भी सको। चलना एक बात है। ___ एक आदमी है, पैर ठीक नहीं है, चल नहीं सकता; पक्षाघात है, लकवा लग गया है। लकवा मिटाना जरूरी है। लकवा मिट जाए तो चल सकेगा, लकवा मिट जाए तो नाच भी सकेगा, लेकिन लकवा मिट जाने से कोई नाचने नहीं लगता है। लकवा मिट जाना नाचने के लिए जरूरी शर्त है, काफी नहीं है। कितने लोग हैं जिनको लकवा नहीं है, लेकिन वे नाचते दिखायी नहीं पड़ते। नाचने के लिए भीतर कुछ संपदा का अनुभव चाहिए। नाचने के लिए भीतर कोई किरण उतरे, कोई गीत उतरे, कोई धुन उतरे, जीवन को कोई सुराग मिले रहस्य का, झलक मिले परमात्मा की, तो कोई नाच सकता है। ____धीरे-धीरे पश्चिम का मनोविज्ञान सरक रहा है। सरकना ही पड़ेगा। क्योंकि बीमार तो बहुत थोड़े लोग हैं। बहुत लोग स्वस्थ हैं, और फिर भी उनके जीवन में कोई आनंद नहीं है, उनकी भी चिंता करनी पड़ेगी। लंगड़े-लूलों को ही ठीक नहीं करना है, नहीं तो काम बड़ा आसान था। जो लंगड़े-लूले नहीं हैं, उनको नाच भी देना है। और काम बड़ा कठिन है।
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