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________________ एस धम्मो सनंतनो लेकिन, जब पहला कदम उठ जाए तो दूसरा कदम भी उठना शुरू हो जाता है। पहला कदम है, कोई आदमी नया बगीचा लगाता है तो घास-पात को उखाड़ता है; व्यर्थ के पौधे, झाड़ी-झंखाड़ को अलग करता है, जमीन खोदकर बदलता है, जड़ें निकालकर फेंकता है। यह जरूरी है। लेकिन बस इतने पर ही रुक जाए तो फूल नहीं आ जाते। फिर बीज बोने पड़ते हैं, फिर पानी सींचना पड़ता है, फिर रखवाली करनी पड़ती है। फिर हजार बाधाएं हैं, उनसे लड़ना पड़ता है। तो एक आदमी को जीवन में सुविधा मिल जाए, स्वास्थ्य मिल जाए, रहने का अच्छा मकान मिल जाए; रोटी, रोजी, मकान का इंतजाम हो जाए; इतने से तो केवल बगीचे की तैयारी हुई थी। अभी बीज नहीं बोए गए थे। इतनेभर से जो राजी हो गया वह नासमझ है। वह असार से राजी हो गया। उसने नकार को सब समझ लिया। वह औषधि से राजी हो गया। उतना काफी नहीं है। चिकित्साशास्त्र का जिनका गहरा अनुभव है, वे कहते हैं कि कई बार दो मरीज एक ही बीमारी के मरीज होते हैं, एक ही अवस्था के होते हैं, और एक पर दवा काम कर जाती है और दूसरे पर काम नहीं करती। तो इसका बड़ा चिंतन चलता है कि ऐसा क्यों होता है? खोज-बीन से पाया गया कि जिस आदमी पर दवा काम कर जाती है वह आदमी जीना चाहता है, जीने की आकांक्षा है, जीवेषणा है, औषधि काम कर जाती है। वह जो दूसरा आदमी है जिस पर औषधि काम नहीं करती-वही बीमारी है, वही अवस्था है-वह जीना नहीं चाहता। वह उदास हो गया है, वह थक गया है, उसने आशा छोड़ दी; फिर औषधि काम नहीं करती। . मेरे देखे, जो लोग मन से रुग्ण हैं, वे वे ही लोग हैं जिनको जीवन में सुख का कोई सुराग नहीं मिला, और उन्होंने आशा छोड़ दी। वे हताश हो गए हैं। उनको तुम खींचतान कर खड़ा भी कर दो तो भी नचा न सकोगे। खींचतान कर खड़ा किया जा सकता है, धक्का-मुक्की देकर चलाया भी जा सकता है। बैसाखियां भी दी जा सकती हैं और किसी तरह उनमें गति लायी जा सकती है। लेकिन नाच बैसाखियों से नहीं आता। और न धक्का देकर कोई नाच ला सकता है। नाच तो उनके अंतरगृह में उतरे, कोई द्वार खुले, कोई झरोखा खुले, भीतर नयी रोशनी आए, नयी हवा आए, परमात्मा उनके भीतर पुनर्जन्म ले, तभी। __पूरब में हमने आनंद का विज्ञान निर्मित किया है। पश्चिम का विज्ञान केवल दुख से कैसे छुटकारा हो। इसलिए पश्चिम में दुख से छुटकारा हो भी गया और लोग बड़े बेचैन हो गए हैं। सुख आता दिखायी नहीं पड़ता। इसीलिए पश्चिम का मनोविज्ञान एक-एक कदम आगे बढ़ रहा है। और आज नहीं कल बुद्धों के मनोविज्ञान से उसका संबंध जुड़ जाएगा। 142
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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