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________________ एस धम्मो सनंतनो भी क्या उपयोग है सिवाय आत्महत्या के? कोई धीरे-धीरे करता है, कोई जल्दी करता है। कोई एक ही छलांग में कर लेता है, कोई आत्महत्या करने में सत्तर साल लगाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इससे कुछ यह पता नहीं चलता कि तुममें और उस आत्महत्या करने वाले आदमी में कोई फर्क है। वह जरा हिम्मतवर रहा होगा, एक झटके में करना चाहता था; तुम कमजोर हो, धीरे-धीरे करते हो। रोज-रोज मरते हो। तुम कर क्या रहे हो यहां पृथ्वी पर, सिवाय मरने के? बुद्ध का मनोविज्ञान वहां से शुरू होता है जहां तुम्हारे पास सब है, और प्रतीति होती है कि कुछ भी नहीं है। आज का मनोविज्ञान दीन और रुग्ण के लिए है। बुद्ध का मनोविज्ञान सम्राट और समर्थ के लिए है। जिसके पास सब है और अनुभव में आया, कुछ भी नहीं है, हाथ खाली हैं। ऐसे हाथ भरे हैं हीरे-जवाहरातों से, मगर हीरे-जवाहरात व्यर्थ हैं। जिसको भरी जिंदगी के बीच जिंदगी उजाड़ मालूम पड़ी, संपत्ति के बीच विपत्ति दिखायी पड़ी, स्वास्थ्य के बीच सिवाय रोगों के घर के और कुछ भी न मालूम पड़ा, और जिंदगी केवल मौत की तरफ यात्रा मालूम पड़ी, वह बुद्ध के पास जाता है। बुद्ध का मनोविज्ञान परम जीवन का मनोविज्ञान है। उस जीवन का जिसका फिर कोई अंत नहीं। शाश्वत का, सनातन का। एस धम्मो सनंतनो। वे उस धर्म और नियम की बात करते हैं जिससे सनातन उपलब्ध हो जाए, शाश्वत उपलब्ध हो जाए। पश्चिम का मनोविज्ञान धीरे-धीरे बुद्ध के मनोविज्ञान के करीब सरक रहा है। सरकना ही पड़ेगा। देखो, पश्चिम के चिकित्साशास्त्र का नाम है, मेडिकल साइंस। उसका मतलब होता है, औषधि-विज्ञान। पूरब में हमने जो औषधि-विज्ञान बनाया, उसको नाम दिया है, आयुर्वेद। औषधि का नाम नहीं दिया, आयु का विज्ञान। और विज्ञान भी नहीं, वेद! विधायक। औषधि तो नकारात्मक है। बीमारी हो तो औषधि का उपयोग है। बीमारी न भी हो तो भी आयुर्वेद का उपयोग है। क्योंकि वह केवल जीवन का विज्ञान है। वह सिर्फ बीमारी की फिकर नहीं करता कि बीमारी हो तो औषधि देकर मिटा दो। बीमारी न भी हो, तो जीवन को कैसे गुणनफल करो, जीवन को कैसे बढ़ाओ! ___ पूरब और पश्चिम की दृष्टि में यह फर्क है। पश्चिम फिकर करता है कांटा निकाल लेने की। पूरब फिकर करता है फूल को भी रख देने की। पश्चिम फिकर करता है दुख निकाल लो, पूरब फिकर करता है आनंद को जन्माओ। दुख को निकाल लेना काफी नहीं है। दुख भी न हो जीवन में तो भी जरूरी थोड़े ही है कि आनंद हो। कितने लोग हैं जिनके जीवन में दुख नहीं है; लेकिन इससे क्या आनंद होता है ? बल्कि सच्चाई यह है कि जिनके जीवन में दुख नहीं है उनको ही पता चलता है कि जीवन बिलकुल व्यर्थ है। जिनके जीवन में दुख है उनको तो अभी आशा लगी 140
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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