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________________ 'आज' के गर्भाशय से 'कल' का जन्म तो महावीर ही हैं। चैतन्य नाचे स्त्रियों जैसे। भक्ति-विभोर! ठीक है। लेकिन उनसे नियम नहीं बनते। और हमेशा ध्यान रखना, नियम से चलने की कोशिश करना। और जो अपवाद है वह पूछने न आएगा। जो नियम है वही पूछने आया है। अपवाद जो है, वह तो पूछता ही नहीं। __ अपवाद अगर धर्म ज्योति होती तो ध्यान सधने लगता। अपवाद नहीं है। है तो स्त्री। गलत बातों के प्रभाव में पड़ गयी। पुरुषों का जहर सिर पर हावी हो गया है। अब वह बाधा डाल रहा है, वह प्रेम नहीं करने देता। और जितना यह ध्यान करने की कोशिश करती है वह झूठी है। यह कोशिश सिर्फ प्रेम से बचने के लिए करती है। इसकी जो ध्यान की कोशिश चल रही है वह सिर्फ इसीलिए ताकि प्रेम में न उलझना पड़े। और प्रेम तो पाप है। प्रेम तो झंझट है। उससे बचना है। तो.ध्यान करना है। और मैं तुमसे कह रहा हूं कि प्रेम से ही ध्यान होगा। और तुम प्रेम से बचने को ध्यान करने चलोगी, कठिनाई हो जाएगी। अधर में अटक जाओगी। त्रिशंकु की दशा हो जाएगी। .. और देर नहीं लगती, अगर समझ में बात आ जाए तो एक क्षण में छोड़ा जा सकता है सब कचरा। क्योंकि कचरा कचरा ही है, वह कभी स्वभाव नहीं बनता। भीतर तो स्वच्छ स्त्री मौजूद है। महात्मा उसे बिगाड़ नहीं सकते। महात्माओं की बातचीत ऊपर-ऊपर के पत्ते हैं। नीचे तो धारा बह रही है स्त्रैण स्वभाव की। जरा पत्तों को हटा दो और भीतर की नदी प्रगट हो जाएगी। लाख पत्ते दबा लें नदी को...यहां पूना की नदी दब जाती है बिलकुल पत्तों में, फिर दिखायी ही नहीं पड़ती, लेकिन तो भी भीतर है। पत्ते लाख दबा दें, तो भी जरा सा हटाओ और नदी प्रगट हो जाती है। . मैंने पूछा था कि है मंजिले-मकसूद कहां खिज्र ने राह बतायी मुझे मयखाने की मैंने पूछा था कि जीवन का लक्ष्य-मंजिले-मकसूद-कहां है? और मेरे गुरु ने मुझे राह बतायी मयखाने की। उसने कहा, बेहोशी में, प्रेम में। मैंने पूछा था कि है मंजिले-मकसूद कहां खिज्र ने राह बतायी मुझे मयखाने की। स्त्री के लिए वही राह है—मयखाने की, बेहोशी की, खोने की; लीन हो जाने की, तल्लीन हो जाने की; अपने को इस तरह मिटा देने की कि भीतर कोई बचे ही न। जिससे प्रेम किया है वही बच रहे। प्रेमी बचे, प्रेयसी खो जाए; परमात्मा बचे, भक्त खो जाए। और तब अचानक भगवान भी खो जाता है। जब भक्त ही खो गया, तो भगवान कहां रहेगा? भक्त की आंखों में ही भगवान है। भक्त के होने में ही भगवान है। जब भक्त ही खो गया तो भगवान कहां रह जाएगा? भक्त भी खो जाता है, भगवान भी खो जाता है, तब जो रह जाता है, वही है। 137
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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