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________________ एस धम्मो सनंतनो स्त्री परमात्मा जो बहुत दूर है आकाश में उसमें उत्सुक नहीं है। परमात्मा जो बहुत पास है, बेटे में है, पति में है, परिवार में है, पड़ोसी में है, उसमें उसका रस है। क्योंकि दूर जाने में उसकी आकांक्षा नहीं है। यहीं डूब जाना है। और जिसे डूबना है, वह कहीं भी डूब सकता है। लेकिन जिसे जीतना है, वह हर कहीं नहीं जीत सकता। जीतने के लिए तो इंतजाम करना पड़ेगा युद्ध का। जीतने के लिए तो संघर्ष की व्यवस्था करनी पड़ेगी। हारने के लिए थोड़े ही कोई व्यवस्था करनी पड़ती है। जीतने के लिए व्यवस्था करनी पड़ती है, हारना तो कभी भी हो सकता है—निहत्थे। उसके लिए कोई शस्त्रों का थोड़े ही आयोजन करना पड़ेगा। सेनाएं थोड़े ही इकट्ठी करनी पड़ेंगी। हारना तो अभी हो सकता है, जैसे हो तुम वैसे ही। लेकिन जीतने के लिए तो बड़ा उपाय करना पड़ता है। फिर भी पक्का नहीं है कि जीत पाओगे। ___तो महावीर के जीवन में बड़ा आयोजन है। वह विजय की यात्रा है। मीरा के जीवन में कोई भी आयोजन नहीं है। वह जहां थी वहीं नाचने लगी। वह जहां थी वहीं दीवानी हो गयी। महावीर को होश साधना है, मीरा को बेहोशी साधनी है। तो यह धर्म ज्योति की तकलीफ मैं समझता हूं। साधुओं ने बिगाड़ा। और वे महात्मा अभी भी इसके चित्त पर भारी हैं। यह मेरे पास भी आ गयी है तो भी आ नहीं पायी। संस्कार इसके वही जड़ता के हैं। इसलिए प्रेम मुश्किल है। और ध्यान तो स्त्री को मुश्किल होता ही है। जब प्रेम ही न हो पाएगा, तो ध्यान तो हो ही न सकेगा। प्रेम से ही ध्यान की तरफ जाने का रास्ता है। बेहोशी से ही होश सधेगा; हार से ही विजय मिलेगी। ___ तो जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी जो जहर के संस्कार दिए गए हैं उनको छोड़ दो। उनको हटाओ। इन संस्कारों के कारण तुम ठीक से स्त्री ही न हो पाओगी। तुम्हारा हृदय प्रमुदित न होगा, तुम खिल न पाओगी। ध्यान रखो, अगर प्रेम ही न सधा, तो ध्यान तो कैसे सधेगा? प्रेम को ही साध लो, तो ध्यान भी सध जाएगा। प्रेम की ही अन्यतम गहराई में ध्यान का फूल खिलेगा। वही स्त्री के लिए मार्ग है। ____ हां, कुछ कभी-कभी अपवाद-स्वरूप कुछ स्त्रियों ने ध्यान भी साधा है। लेकिन अपवाद को मैं नियम नहीं बनाता। कश्मीर में एक स्त्री हई लल्लाह। उसकी महावीर से बैठ जाती बात। वह महावीर जैसी ही नग्न रही। कोई दूसरी स्त्री पूरी पृथ्वी पर नहीं रही। जैसे महावीर नग्न रहे ऐसे ही लल्लाह भी नग्न रही। अकेली ही स्त्री है वह पूरे मनुष्य-जाति के इतिहास में जो जंगल की तरफ भागी और नग्न हो गयी। कश्मीर में उसका बड़ा आदर है। कश्मीरी कहते हैं, हम दो ही शब्द जानते हैं—अल्लाह और लल्लाह। मगर लल्लाह स्त्रियों की प्रतिनिधि नहीं है। वह अपवाद है। ऐसे ही चैतन्य हुए पुरुषों में। वे अपवाद हैं। वे पुरुषों के प्रतीक नहीं हैं। प्रतीक 136
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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