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________________ एस धम्मो सनंतनो वही पुरुष स्त्री के प्रेम के लिए राजी हो सकता है जो अहंकार को छोड़ने को राजी हो। यह पुरुष के लिए बहुत कठिन है। इसका एक ही उपाय है उसके लिए, ध्यान; कि वह गहरे ध्यान में उतरे। तो मेरे देखने में ऐसा है कि अगर पुरुष गहरे ध्यान में उतर जाए, तो ही प्रेम के योग्य हो पाता है। और स्त्री अगर प्रेम में उतर जाए, तो ही ध्यान के योग्य हो पाती है। स्त्री सीधे ध्यान न कर सकेगी। तुम उसे लाख समझाओ कि चुप होकर शांत बैठ जाओ, वह कहेगी, लेकिन किसके लिए? किसको याद करें? किसका स्मरण करें? किसकी प्रतिमा सजाएं? किसका रूप देखें भीतर? ___मंदिरों में जो प्रतिमाएं हैं वे सभी स्त्रियों ने रखी हैं। परमात्मा के नाम के जितने गीत हैं वे सब स्त्रियों ने गाए हैं। भजन है, कीर्तन है, उसका अनूठा रस स्त्रियों ने लिया है। और पुरुष और स्त्री के बीच बड़ी बेबूझ पहेली है। वे एक-दूसरे को समझ नहीं पाते हैं। समझें भी कैसे? तुम जिस स्त्री के साथ जीवनभर रहे हो, या जिस पुरुष के साथ जीवनभर रहे हो, उसको भी समझ नहीं पाते। क्योंकि भाषा अलग है, यात्रा अलग है; दोनों के सोचने का, होने का ढंग अलग है। __ जिस दिन दुनिया में ठीक-ठीक समझ आएगी उस दिन स्त्री का मनोविज्ञान अलग होना चाहिए, पुरुष का मनोविज्ञान अलग। उन दोनों के मन अलग हैं। इसलिए सिर्फ मनोविज्ञान कहने से कुछ भी न होगा। मनोविज्ञान से क्या पता चलता है ? किसका मनोविज्ञान ? स्त्री का या पुरुष का? स्त्री के मन का ढांचा ही अलग है। पुरुष के मन का ढांचा अलग है। इसलिए पुरुष महावीर और बुद्ध बन जाता है। महावीर को हमने नाम दिया है-जिन। जिसने जीत लिया। बुद्ध को हमने नाम दिया–बुद्ध। जो जाग गया। लेकिन मीरा से पूछो, जीता? मीरा कहेगी, हारे। कृष्ण को, और जीतने की बात ही बेहूदी है! परमात्मा को जीतने की बात ही बेहूदी है! जीतने की भाषा में ही आक्रमण और हिंसा है। अब थोड़ा समझो। ___ महावीर जैसे अहिंसक को भी हमने जिन कहा है। लेकिन जिन शब्द में ही हिंसा है-जीता, विजय। वह भाषा ही क्षत्रिय की है। वह भाषा पुरुष की है। अब महावीर जैसे परम ध्यान को उपलब्ध हुए, ज्ञान को उपलब्ध हुए, लेकिन भाषा तो पुरुष की ही रहेगी। ___मीरा से पूछो, जीता? मीरा कहेगी, तुम समझे ही नहीं; प्रेम में कहीं कोई जीतता है? हारते हैं। मगर हार ही वहां जीत है। मीरा से पूछो, जागी? मीरा कहेगी, जागना वहां कहां है? वहां तो खोना है; वहां तो मिटना है। वहां तो बेहोशी ही होश है। अब इसको थोड़ा समझ लेना। मीरा के लिए बेहोश हो जाना होश है, और हार 134
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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