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'आज' के गर्भाशय से 'कल' का जन्म
होती है तब वह अंतर्मुखी हो जाती है। वह प्रेम भी जिस व्यक्ति को करती है, उसको भी जब ठीक से देखना चाहती है तो आंख बंद कर लेती है। यह भी कोई देखने का ढंग हुआ! मगर यही स्त्री का ढंग है। क्योंकि ऐसे आंख बंद करके ही वह उस चिन्मय को देख पाती है; आंख खोलकर तो मृण्मय दिखायी पड़ता है। और स्त्री जब भी किसी को प्रेम करती है तो परमात्मा से कम नहीं मानती। आंख बंद करके परमात्मा दिखायी पड़ता है। आंख खोलो तो मिट्टी की देह है।
लेकिन पुरुष का रस भीतर में कम है, बाहर में ज्यादा है। पुरुष आंख खोलकर प्रेम करना चाहता है। प्रेम के क्षण में भी चाहता है कि रोशनी हो, ताकि वह स्त्री की देह को ठीक से देख सके। तो पुरुषों ने तो स्त्रियों की नग्न मूर्तियां बहुत बनायी हैं, स्त्रियों ने पुरुषों की एक भी नग्न मूर्ति नहीं बनायी। और पुरुषों ने तो स्त्रियों के नाम पर कितना अश्लील पोर्नोग्रफी, और साहित्य, और चित्र, और पेंटिंग्स की हैं। स्त्रियों ने एक भी नहीं की। क्योंकि पुरुष का रस देह में है, रूप में है, रंग में है, बहिर में है। ... स्त्रियों को तो भरोसा ही नहीं आता कि शरीर के चित्रण में इतनी उत्सुकता क्यों है? क्योंकि स्त्री को तो शरीर के पार के देखने की सुविधा है। उसके पास एक झरोखा है, जहां से वह देह को भूल जाती है और परमात्मा को देख लेती है। पुरुषों ने नहीं समझाया है स्त्री को कि पति परमात्मा है। यह स्त्रियों की प्रतीति है; कि जिसको भी उन्होंने प्रेम किया उसमें परमात्मा देखा। जहां प्रेम की छाया पड़ी, वहीं परमात्मा प्रगट होता है। जहां प्रेम की भनक आयी, वहीं परमात्मा के आने का प्रारंभ हो जाता है। प्रेम की पगध्वनि में परमात्मा की पगध्वनि अपने आप सुनायी पड़ने लगती है।
लेकिन पुरुष बंधा अनुभव करता है। उसकी यात्रा बहिर्यात्रा है। उसे चांद-तारों पर जाना है। उसे दूर को जीतना है। उसे संसार को विजय करना है। ऐसे अगर घर में बंध जाएगा तो फिर यह दूर की यात्रा का क्या होगा? बाजार में कौन जीतेगा? दिल्ली में कौन विराजमान होगा? कहां जाएगा? कौन भागेगा? इस आपाधापी को कौन करेगा?
तो जैसे ही जितना ही महत्वाकांक्षी पुरुष हो, उतना ही स्त्री से बचेगा। महत्वाकांक्षी राजनीतिज्ञ हो, स्त्री से बचेगा। क्योंकि अगर स्त्री ने बांध लिया, तो स्त्री काफी संसार है। फिर उसके पार संसार बचता नहीं। वैज्ञानिक महत्वाकांक्षी हो, अन्वेषण में लगा हो, स्त्री से बचेगा। ध्यान करने वाला ध्यानी हो, स्त्री से बचेगा। क्योंकि स्त्री इस पूरी तरह घेर लेती है कि फिर कुछ और करने की सुविधा नहीं रह जाती। ध्यान न करने देगी, शास्त्र न पढ़ने देगी, चुनाव न लड़ने देगी, धन न कमाने देगी। क्योंकि चारों तरफ से घेर लेगी। स्त्री तुम्हारे चारों तरफ प्रेम का एक घर बनाती है। उसमें तुम्हें लगता है कि तुम घुटे-घुटे अनुभव करते हो, क्योंकि तुम्हारी महत्वाकांक्षा मरती है।
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