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एस धम्मो सनंतनो
और इसीलिए तो इतना आकर्षण है। विपरीत में ही आकर्षण होता है। समान में तो विकर्षण हो जाता है। समान से तो ऊब हो जाती है। विपरीत में खोज और जिज्ञासा जारी रहती है।
अच्छा है कि पुरुष और स्त्री विपरीत हैं, अन्यथा संसार में सब रस खो जाए। स्त्री और पुरुष जितने विपरीत हों उतना ही सुखद है। जितना उनके बीच फासला हो, जितनी दोनों के बीच दूरी हो, और दोनों जितने एक-दूसरे से भिन्न हों, उतना ही उनके बीच संबंध की गरिमा निर्मित होगी, संबंध के शिखर निर्मित होंगे। __ मनुष्य ने अपने अतीत में स्त्री और पुरुष को जितना भिन्न बन सके बनाने की कोशिश की थी। इसलिए प्रेम की बड़ी अनूठी घटनाएं घटीं। पश्चिम में आधुनिक युग में स्त्री और पुरुष को पास लाने की चेष्टा की गयी है, प्रेम समाप्त हुआ जा रहा है। क्योंकि स्त्री-पुरुष करीब-करीब समान मालूम होने लगे हैं। स्त्री-पुरुष समान होने चाहिए न्याय की दृष्टि में, समान नहीं होने चाहिए स्वभाव की दृष्टि से। बड़े असमान हैं। बड़े भिन्न हैं। ___असमान का यह अर्थ नहीं है कि स्त्री पुरुष से नीची है, या पुरुष स्त्री से ऊंचा है। असमान का अर्थ है कि दोनों बड़े भिन्न हैं, जैसे रात और दिन, रोशनी और अंधेरा। इतना ही फासला है। कानून उनको समान माने, लेकिन मनोविज्ञान उन्हें समान नहीं कह सकता। और अगर समान बनाने की चेष्टा की गयी, तो जितने स्त्री-पुरुष समान होते जाएंगे उतना ही स्त्री पुरुष जैसी हो जाएगी, पुरुष स्त्री जैसा हो जाएगा; उन दोनों के बीच का आकर्षण खो जाएगा। उन दोनों के बीच जो एक मधुर तनाव है-प्रेम भी है और संघर्ष भी है, मधुर तनाव है; लगाव भी है और विरोध भी है; कभी फूल भी खिलते हैं, कभी कांटे भी चुभ जाते हैं; पास भी आते हैं, दूर भी हटते हैं; निमंत्रण भी है, अस्वीकार भी है-उन दोनों के बीच यह जो बड़ा खेल चलता है जीवन का, यह जो सारी लीला है जीवन की, वह मधुर है। वह शुभ है, सुंदर है। और उस सबका आधार यह है कि स्त्री समर्पण करने में कुशल है। स्त्री हारकर जीतती है। उसके जीतने का ढंग वही है। वह चरणों में रख देती है अपने को और सिरताज हो जाती है। वह अपने को खो देती है और पुरुष के रोएं-रोएं में समा जाती है।
इसी से पुरुष घबड़ाता है। क्योंकि पुरुष जानता है, उसका समर्पण खतरनाक है। उसके समर्पण में ही बंधन पैदा हो जाता है। पुरुष अपने को बंधा अनुभव करता है। क्योंकि उसका अहंकार है। वह स्वाभाविक है कि वह अपने को बचाए, लड़े, संघर्ष करे। उसकी यात्रा अलग है। पुरुष बहिर्मुखी है, स्त्री अंतर्मुखी है। पुरुष और स्त्री जब एक-दूसरे को प्रेम भी कर रहे हों, तो पुरुष आंख खोलकर प्रेम करता है, स्त्री आंख बंद करके। __ जब भी स्त्री भाव में होती है, आंख बंद कर लेती है। क्योंकि जब भी भाव में
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