________________
'आज' के गर्भाशय से 'कल' का जन्म
ध्यान के द्वारा। भक्ति पुरुषों को जमती ही नहीं। प्रेम के साथ तालमेल नहीं बैठता। और कभी अगर अपवादरूप कोई पुरुष भक्त हो गया हो, तो अपवादरूप ही कोई स्त्री ध्यानी हई है। लेकिन उससे नियम निर्मित नहीं होता।
पुरुष ध्यान से जाएगा। ध्यान है परम संकल्प। ध्यान का अर्थ समझ लो। ध्यान का अर्थ है, अकेले हो जाने की क्षमता। दूसरे पर कोई निर्भरता न रह जाए। दूसरे का खयाल भी विस्मृत हो जाए। सभी खयाल दूसरे के हैं। खयाल मात्र पर का है। जब पर का कोई विचार न रह जाए, तो स्व शेष रह जाता है। और उस स्व के शेष रह जाने में स्व भी मिट जाता है; क्योंकि स्व अकेला नहीं रह सकता, वह पर के साथ ही रह सकता है। जिस नदी का एक किनारा खो गया, उसका दूसरा भी खो जाएगा। दोनों किनारे साथ-साथ हैं। अगर सिक्के का एक पहलू खो गया, तो दूसरा पहलू अपने आप नष्ट हो जाएगा। दोनों पहलू साथ-साथ हैं। जिस दिन अंधकार खो जाएगा, उसी दिन प्रकाश भी खो जाएगा। __ऐसा मत सोचना कि जिस दिन अंधकार खो जाएगा उस दिन प्रकाश ही प्रकाश बचेगा। इस भूल में मत पड़ना। क्योंकि वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिस दिन मौत समाप्त हो जाएगी, उसी दिन जीवन भी समाप्त हो जाएगा। ऐसा मत सोचना कि जब मौत समाप्त हो जाएगी तो जीवन अमर हो जाएगा। इस भूल में पड़ना ही मत। मौत और जीवन एक ही घटना के दो हिस्से हैं—अन्योन्याश्रित हैं। एक-दूसरे पर निर्भर हैं। तो जब पर बिलकुल छूट जाता है, तो स्वयं की उस निजता में अंततः स्वयं का होना भी मिट जाता है। शून्य रह जाता है। ध्यान की यही अवस्था है, उसको हमने समाधि कहा है। ____दो शब्द बनाने चाहिए। ध्यान-समाधि और प्रेम-समाधि। समाधि तो दोनों में एक ही है, लेकिन दोनों के मार्ग बड़े अलग हैं। पुरुष को जो समाधि उपलब्ध होती है, जो बुद्ध को उपलब्ध हुई, वह है ध्यान-समाधि। पर को छोड़ा, स्व छूट गया, समाधि उपलब्ध हुई। . मीरा को जो समाधि उपलब्ध हुई, वह है प्रेम-समाधि। पर को नहीं छोड़ा, स्वयं को समर्पित किया। इतना समर्पित किया कि स्व न बचा, पर ही बचा। और जब पर अकेला बचा तो पर भी मिट गया; समाधि उपलब्ध हो गयी। जहां दो मिट जाते हैं वहां समाधि। लेकिन मीरा की समाधि प्रेम से आयी। बुद्ध की समाधि ध्यान से आयी। समाधि तो एक है, लेकिन मार्ग बड़ा अलग-अलग है। ___ बुद्ध की बात सुन-सुनकर प्रेम से आस्था उठ गयी। पुरुष की उठ जाए, कोई हर्जा नहीं, लाभपूर्ण है। लेकिन स्त्री की उठ जाए तो खतरा है। क्योंकि पुरुष के स्वभाव के तो अनुकूल है ध्यान का मार्ग, स्त्री के स्वभाव के अनुकूल नहीं है। और स्त्री-पुरुष विपरीत हैं। इसीलिए तो उनमें इतना आकर्षण है। वे ऋण और धन विद्युत की तरह हैं। दिन और रात की तरह हैं। जीवन और मृत्यु की तरह हैं। विपरीत हैं।
131